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पर्यावरण-संरक्षण में भोगोपभोग - परिमाणव्रत की भूमिका
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यहाँ पर यह ज्ञातव्य है कि बौद्ध भिक्षु एवं भिक्षुणियों की संयम-साधना उतने कठोर नियमों में आबद्ध नहीं है, जितनी जैन मुनियों एवं साध्वियों की है । बौद्ध भिक्षु यात्रा में वाहन आदि का उपयोग कर लेते हैं, वे पास में पैसा भी रख सकते हैं, भिक्षा के बिना भी सुविधा से आमंत्रण पर भोजन कर लेते हैं । ब्रह्मचर्य के पालन में भी कठोर नियम न होने से भिक्षुणियों की संयम-साधना पर खतरा उत्पन्न हुआ और उनकी संख्या विलुप्त हो गई। बुद्ध पहले चाहते भी नहीं थे कि भिक्षुणी संघ बनाया जाए, किन्तु प्रमुख शिष्य आनन्द के निवेदन पर भिक्षुणी संघ बना। उसमें अनेक नारियों के जीवन का सचमुच उद्धार हुआ, किन्तु नियमों की शिथिलता से भिक्षुणी संघ अन्त में नहीं टिक पाया। बौद्ध भिक्षु भिक्षा में प्राप्त मांस का सेवन भी करते रहे। वहीं जैन साधु-साध्वी संयम की पालना में उनसे कहीं आगे रहे। कतिपय अपवाद को छोड़कर वे आज भी पदयात्रा करके एक ग्राम से दूसरे ग्राम पहुँचते हैं, वाहन आदि का उपयोग नहीं करते। पास में फूटी कौडी भी नहीं रखते तथा एषणा समिति के नियमों का पालन करते हुए शुद्ध गवेषणापूर्वक आहार ग्रहण करते हैं। मांस-मदिरा के सेवन से जैन साधु-साध्वी कोसों दूर हैं । साधु-साध्वी के पारस्परिक व्यवहार के नियम इतने कठोर हैं कि वे अकेले में कभी मिल बैठकर बात नहीं कर सकते । दिन के निश्चित समय में गृहस्थ स्त्री-पुरुष की उपस्थिति में ही वे मिल सकते हैं तथा रत्नत्रय की साधना की अभिवृद्धि सम्बन्धी चर्चा कर सकते हैं, विकारवर्धक चर्चा नहीं कर सकते। दिगम्बर मुनि बाह्य परिग्रह के सर्वथा त्यागी होते हैं तथा श्वेताम्बर साधु लज्जा एवं संयम की रक्षा के लिए सीमित वस्त्र रखते हैं। उन वस्त्रादि पर भी मूर्छाभाव का होना उसी प्रकार त्याज्य है, जिस प्रकार शरीर एवं अपने वैचारिक आग्रह के प्रति मूर्छाभाव त्याज्य है।
बौद्धदर्शन में दुःखमुक्ति के लिए आर्य अष्टांगिक मार्ग का जो प्रतिपादन किया गया है उसका समावेश जैनदर्शन के त्रिरत्न अथवा सम्यक् तप सहित चतुर्विध मार्ग में हो जाता है । अष्टांगिक मार्ग है- 1. सम्यक्दृष्टि 2. सम्यक्संकल्प 3. सम्यक्वाचा 4. सम्यक्कर्मान्त 5. सम्यक्आजीव 6. सम्यक्व्यायाम 7. सम्यक्स्मृति
और 8. सम्यक्समाधि । इनमें प्रथम दो को प्रज्ञा, मध्य के तीन को शील एवं अन्तिम तीन को समाधि के अन्तर्गत विभक्त किया जाता है ।दुःख है, दुःख का