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उमास्वातिकृत प्रशमरतिप्रकरण एवं उसकी तत्त्वार्थसूत्र से तुलना
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(5) पंचविध ज्ञान- मति, श्रुत, अवधि, मनः पर्याय एवं केवल नामक पंचविध ज्ञानों का जितना सुव्यवस्थित निरूपण तत्त्वार्थसूत्र में उपलब्ध होता है उतना प्रशमरतिप्रकरण में नहीं । प्रशमरतिप्रकरण में पाँच ज्ञानों के नाम उपलब्ध होते हैं तथा उन्हें प्रत्यक्ष एवं परोक्ष में विभक्त किया गया है (कारिका 224-225), किन्तु इन ज्ञानों के भेदोपभेदों का कथन-विवेचन प्रशमरति में उपलब्ध नहीं है, जबकि तत्त्वार्थसूत्र के प्रथम अध्याय का अधिकांश ज्ञान के पाँच भेदों के भेदान्तर एवं उनके विवेचन पर ही केन्द्रित है । तत्त्वार्थसूत्र का प्रथम अध्याय जैन ज्ञानमीमांसा का संक्षेप में व्यवस्थित निरूपण करता है । इससे भी विदित होता है कि तत्त्वार्थसूत्र की रचना प्रशमरतिप्रकरण के पश्चात् हुई है। __(6) प्रमाण भेद- प्रमाणमीमांसा के सम्बन्ध में उमास्वाति का एक अन्य महत्त्वपूर्ण योगदान यह है कि उन्होंने ही सर्वप्रथम पंचविध ज्ञानों को प्रमाण के रूप में प्रतिष्ठित किया (तत्प्रमाणे- तत्त्वार्थसूत्र 1.10) आगमों में ज्ञान के प्रत्यक्ष एवं परोक्ष भेद (नन्दी सूत्र, 2) तो प्राप्त होते हैं, किन्तु वहाँ उनके लिए 'प्रमाण' शब्द का प्रयोग नहीं है। प्रशमरतिप्रकरण में उमास्वाति ने पंचविध ज्ञानों को प्रत्यक्ष एवं परोक्ष में विभक्त किया है, (ज्ञानमथ पंचभेदंतत् प्रत्यक्षं परोक्षंच ।-कारिका 224) किन्तु ज्ञानों के लिए 'प्रमाण' शब्द का प्रयोग तत्त्वार्थसूत्र में ही किया है। इस प्रकार तत्त्वार्थसूत्र प्रमाणमीमांसा की दृष्टि से भी प्रथम महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है, जिसमें
आगम-परम्परा में प्राप्त ज्ञान के विवेचन को प्रमाण के रूप में स्थापित किया गया है। उन्होंने इन्द्रिय एवं मन के सापेक्ष मति एवं श्रुतज्ञान को परोक्ष (आद्ये परोक्षम्तत्त्वार्थसूत्र 1.11) तथा आत्ममात्रापेक्ष अवधि, मनःपर्याय एवं केवलज्ञान को प्रत्यक्ष प्रमाण (प्रत्यक्षमन्यत्-तत्त्वार्थसूत्र 1.12) कहकर जैन प्रमाण-मीमांसा को एक व्यवस्थित स्वरूप प्रदान किया है, जो आगे सिद्धसेन, अकलङ्क, विद्यानन्द, वादिराज, अभयदेव, प्रभाचन्द्र, हेमचन्द्र, वादिदेव, यशोविजय आदि दार्शनिकों के द्वारा पल्लवित एवं पुष्पित हुआ है । उमास्वाति ने 'मतिः स्मृति संज्ञा चिन्ताऽभिनिबोध इत्यनर्थान्तरम्' (तत्त्वार्थसूत्र, 1.13) सूत्र के अनुसार मति, स्मृति, संज्ञा, चिन्ता और अभिनिबोध को एकार्थक प्रतिपादित कर भट्ट अकलङ्क के लिए