Book Title: Jain Dharm Darshan Ek Anushilan
Author(s): Dharmchand Jain
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 435
________________ उमास्वातिकृत प्रशमरतिप्रकरण एवं उसकी तत्त्वार्थसूत्र से तुलना 417 नहीं समझा और श्वेताम्बराचार्यों के लिए आगमग्रन्थ उपलब्ध थे, अतः इस प्रकरण पर अपेक्षाकृत कम ही टीकाएँ लिखी गईं । जो लिखी गईं उनमें से अधिकांश उपलब्ध नहीं हैं । (3) सूत्र शैली के ग्रन्थों पर दार्शनिक युग में जितनी टीकाएँ लिखी गईं, उतनी कारिका ग्रन्थों पर नहीं । (4) प्रशमरतिप्रकरण के पश्चात् प्रौढ ग्रन्थ तत्त्वार्थसूत्र की रचना हुई एवं वह भी सूत्रशैली में। इसलिए तत्त्वार्थसूत्र पर टीकाओं का लेखन जैनधर्म की दोनों परम्पराओं में हुआ। ऐसे ही कुछ और भी कारण रहे होंगे, जो यह स्पष्ट करते हैं कि उमास्वाति का प्रशमरतिप्रकरण उतना प्रकाश में क्यों नहीं आया, जितना कि तत्त्वार्थसूत्र। ____ आधुनिक युग में उपयोगी ग्रन्थ- आधुनिक युग में प्रशमरतिप्रकरण की उपयोगिता असंदिग्ध है । प्रशमरतिप्रकरण में प्रशम एवं उसके सुख का प्रतिपादन उमास्वाति की नितान्त मौलिक सूझ है। उन्होंने वैराग्य, माध्यस्थ्य या कषायविजय रूप प्रशम का फल परलोक में ही नहीं, इस लोक में भी निरूपित किया है । प्रशमरतिप्रकरण की रचना का यही प्रमुख उद्देश्य भी प्रतीत होता है । उमास्वाति ने कहा है कि विषयसुख की अभिलाषा से रहित तथा प्रशमगुणों से अलङ्कृत साधु उस सूर्य की भाँति है जो अन्य समस्त तेजों को अभिभूत करके प्रकाशित होता है (कारिका 242)। प्रशम एवं अव्याबाध सुख को चाहने वाला साधक सद्धर्म में दृढ़ है तो देवों और मनुष्यों से युक्त इस लोक में उसकी तुलना नहीं हो सकती (कारिका 236) । उमास्वाति का मन्तव्य है कि जिन्होंने मद और काम को जीत लिया है, मन, वचन और काया के विकारों से रहित हैं तथा पर की आशा से विरहित हैं, ऐसे शास्त्रविधि के पालक साधुओं को यहीं मोक्ष मिल जाता है (कारिका, 238) । यहाँ पर उमास्वाति सम्भवतः प्रशम सुख को ही मोक्ष सुख के रूप में प्रकट कर रहे हैं, क्योंकि उससे मोक्षसुख का अंशतः अनुभव किया जा सकता है । प्रशमसुख की महिमा का वर्णन करते हुए उन्होंने कहा है कि सम्यग्दृष्टि और सम्यग्ज्ञानी व्रत एवं तपोबल से युक्त होकर भी यदि उपशान्त नहीं है तो वह उस गुण को प्राप्त नहीं करता जिसे प्रशम सुख में विद्यमान साधु प्राप्त कर लेता है । उमास्वाति कहते हैं कि स्वर्ग के सुख परोक्ष हैं तथा मोक्ष के सुख अत्यन्त परोक्ष हैं, किन्तु कषायों की शान्ति

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