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जैन धर्म-दर्शन : एक अनुशीलन
स्वरूप प्रशम सुख प्रत्यक्ष है, वह पराधीन नहीं है और न ही विनाशी है, इसके लिए धनादि के व्यय की आवश्यकता नहीं होती।
स्वर्गसुखानि परोक्षाण्यत्यन्तपरोक्षमेवमोक्षसुखम् । प्रत्यक्षं प्रशमसुखंनपरवशंन व्ययप्राप्तम् ।।कारिका, 237
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प्रयुक्त ग्रन्थ-सूची 1. अनुयोगद्वार सूत्र, आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर, 1987
आगमयुग का जैन दर्शन, पं. दलसुख मालवणिया, प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर, 1990 उत्तराध्ययनसूत्र, आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर। गोम्मटसार (जीवकाण्ड), श्रीमद् राजचन्द्र आश्रम, अगास । जैन साहित्य का इतिहास, भाग-2, श्री गणेशप्रसादवर्णी जैन ग्रन्थमाला, वाराणसी, प्रथम संस्करण जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग-4, पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान, वाराणसी तत्त्वार्थसूत्र, पं. सुखलाल संघवी, पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान, वाराणसी, सन् 1993 दशवैकालिक सूत्र, सम्यग्ज्ञान प्रचारक मण्डल, जयपुर, 2005 नन्दीसूत्र, आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर । पंचास्तिकाय, टोडरमल स्मारक ट्रस्ट, जयपुर। प्रशमरतिप्रकरण (हारिभद्रीय टीका एवं अवचूरि सहित) श्री परमश्रुत प्रभावक मण्डल, श्रीमद् राजचन्द्र आश्रम, आगास, द्वितीयावृत्ति, विक्रम संवत्, 2044 बौद्ध प्रमाणमीमांसा की जैन दृष्टि से समीक्षा, डॉ. धर्मचन्द जैन, पार्श्वनाथ विद्यापीठ,
वाराणसी, प्रथम संस्करण 1995 13. व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र, आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर ।
सर्वार्थसिद्धि, पूज्यपाद देवनन्दी, भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली, 15वां संस्करण, 2009