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प्रकीर्णक-साहित्य में समाधिमरण की अवधारणा
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आराधना के 24 द्वार दिए गए हैं, जो आराधना का क्रमिक स्वरूप प्रस्तुत करते हैं, वे 24 द्वार हैं- 1. संलेखना द्वार, 2. स्थान द्वार (ध्यानानुकूल स्थान का चयन), 3. विकटना (अतिचारों की आलोचना), 4. सम्यक्त्व द्वार, 5. अणुव्रत द्वार, 6. गुणव्रत द्वार (श्रावक के लिए), 7. पापस्थान द्वार, 8. सागार द्वार, 9. चतुःशरण गमन द्वार, 10. दुष्कृत गर्दा द्वार, 11. सुकृतानुमोदना द्वार, 12. विषय द्वार, 13. संघादि से क्षमा,14 चतुर्गति के जीवों से क्षमा द्वार, 15. चैत्य नमन द्वार, 16. अनशन द्वार, 17. अनुशिष्टि द्वार (गुरु द्वारा शिक्षा), 18. भावना द्वार (द्वादश भावनाएं), 19.कवच द्वार (स्थिरीकरणार्थ), 20. नमस्कार द्वार, 21. शुभध्यान द्वार] 22. निदान द्वार, 23. अतिचारनाश द्वार और 24. फलद्वार। इसप्रकार पर्यन्ताराधना में मरणविधि का एक व्यवस्थित क्रम निरूपित है । एक आचार्य (अज्ञात नाम) की आराधना पताका में उत्तम मरणविधि के 32 द्वार दिए गए हैं। उन्होंने अनुशिष्टि द्वार के 17 प्रतिद्वार दिए हैं तथा निर्यामक, असंविग्न, निर्जरणा, द्रव्यदान, स्वजनक्षमा, जिनवरादिक्षमा, शक्रस्तव और कायोत्सर्ग द्वार - नए जोड़े हैं। वीरभद्राचार्य ने अपनी आराधना पताका में भक्तप्रत्याख्यान आदि त्रिविध मरणों का निरूपण करते हुए प्रसंगानुसार द्वारों का निरूपण किया है।
इन आराधनाओं की अपेक्षा प्राचीन प्रकीर्णकों में मरणविधि तो निरूपित है, किन्तु उसे विभिन्न द्वारों में विभक्त नहीं किया गया है। आतुरप्रत्याख्यान नाम के तीन प्रकीर्णक हैं," किन्तु एक प्रकीर्णक में ही चार आलम्बन दिए गए हैं और वे भी पादपोपगमन मरण के सम्बन्ध में। इसका अर्थ यह है कि आराधनाओं की रचना प्रकीर्णकों के पश्चात हुई है एवं प्रकीर्णकों की विषयवस्तु को ही उनमें स्पष्टतर रूप में प्रतिपादित किया गया है। ___ हम प्रकीर्णकों को आधार बनाकर समाधिमरण के निम्नांकित प्रमुख सोपान निर्धारित कर सकते हैं
1. संलेखना, 2. आत्म-आलोचन, 3. व्रताधान, 4. संस्तारक 5. क्षमायाचना, 6. आहार, शरीर एवं उपधि का त्याग, 7. भावनाओं द्वारा दृढ़ीकरण, 8. पंच परमेष्ठी की शरण, 9. देह विसर्जना। स्थूल रूप में तो संलेखना, संथारा और मरण