________________
394
जैन धर्म-दर्शन : एक अनुशीलन
उपशम, प्रशम, दोषक्षय और कषाय विजय की गणना की है (माध्यस्थ्यं वैराग्यं विरागता शान्तिरुपशमः प्रशमः । दोषक्षयः कषायविजयश्च वैराग्यपर्यायाः ।कारिका, 17 ) जो वैराग्य या प्रशम के विभिन्न रूपों को प्रकट करते हैं । टीकाकार हरिभद्र ने तो मंगलाचरण में प्रशमरति को वैराग्य पद्धति का ही ग्रन्थ बताया है। प्रशम या वैराग्य रूप एक विषय पर ही केन्द्रित होने के कारण यह प्रकरण ग्रन्थ की कोटि में आता है (शास्त्रैकदेशसम्बद्धंशास्त्रकार्यान्तरे स्थितम्।आहुः प्रकरणंनाम ग्रन्थभेदंविपश्चितः।।)।
ग्रन्थ में 22 अधिकार एवं 313 कारिकाएँ हैं । 22 अधिकार इस प्रकार हैं - 1. पीठबन्ध 2. कषाय 3. रागादि 4. अष्टकर्म 5. पंचेन्द्रिय विषय 6. अष्टमद 7. आचार 8. भावना 9. धर्म 10. धर्मकथा 11. जीवादि नव तत्त्व 12. उपयोग 13. भाव 14. षड्द्रव्य 15. चारित्र 16. शीलाङ्ग 17. ध्यान 18. क्षपकश्रेणी 19. समुद्घात 20. योगनिरोध 21. मोक्षगमन-विधान 22. अन्त फल । ग्रन्थ की विस्तृत विषयवस्तु का आपाततः बोध इन अधिकारों के नामों से ही हो जाता है। किन्तु प्रसंगतः इनमें निर्ग्रन्थ-स्वरूप, लोकस्वरूप, आत्मा के आठ प्रकार, मोहनीय कर्म के उन्मूलन की प्रक्रिया, गृहस्थचर्या आदि विषयों का भी निरूपण हुआ है। प्रशमरतिप्रकरण में वर्णित बहुत से विषय ऐसे हैं जो तत्त्वार्थसूत्र के पूरक हैं, यथा-दशविध धर्मों, द्वादश भावनाओं, षड्लेश्याओं एवं मुक्ति की प्रक्रिया का जो विस्तृत वर्णन प्रशमरतिप्रकरण में उपलब्ध है वह तत्त्वार्थसूत्र में उठी जिज्ञासाओं का शमन करता है। आत्मा के द्रव्य, कषाय, योग, उपयोग आदि आठ भेद विनय का महत्त्व, प्रशम-सुख की प्राप्ति का उपाय, कुल-रूप-बल आदि अष्ट मद चतुर्विध धर्मकथा, 18 हजार शीलाङ्ग आदि कुछ विषय ऐसे हैं जो प्रशमरतिप्रकरण की पृथक् रचना के वैशिष्ट्य को प्रदर्शित करते हैं। प्रशमरति के कुछ प्रमुख विषयों पर यहाँ विचार किया जा रहा है। प्रशमरतिप्रकरण में चर्चित कतिपय प्रमुख विषय
कल्प्य और अकल्प्य का विचार- प्रशमरतिप्रकरण के अष्टम ‘भावना' अधिकार में साधु-साध्वी के लिए कल्प्य-अकल्प्य का विधान करते समय पिण्ड, शय्या, वस्त्र, पात्र आदि को कल्प्य प्रतिपादित करते हुए उमास्वाति द्वारा प्रश्न