Book Title: Jain Dharm Darshan Ek Anushilan
Author(s): Dharmchand Jain
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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प्रकीर्णक-साहित्य में समाधिमरण की अवधारणा
377
बहुमोहो विहरित्ता पच्छिमकालम्मि संवुडो सो उ।
आराहणोवउत्तो जिणेहिं आराहओ भणिओ।। -चन्द्रवेध्यक, गाथा 157-158 16. तिविहं भणंति मरणं बालाणं बालपंडियाणं च।
तइयं पंडियमरणं जं केवलिणो अणुमरंति।। -आतुरप्रत्याख्यान, गाथा 36 17. पंडियपंडियमरणं च पंडियं बालपंडियं तह या ____बालमरणं चउत्थं च पंचमं बालबालं तु।। -आराधनापताका (2), गाथा 43 18. द्रष्टव्य, आराधनापताका (2), गाथा 44-47 19. सत्थग्गहणं विसभक्खणं च जलणं च जलपवेसो या
अणयार भंडसेवी जम्मणमरणाणुबंधीणि।। -आतुरप्रत्याख्यान, गाथा 46 20. सत्तविधे आउभेदे पण्णत्ते, तं जहा
अज्झवसाण णिमित्ते, आहारे वेयणा पराघाते।
फासे आणापाणू सत्तविहं भिज्जए आऊ।। -स्थानाङ्गसूत्र, 7.7.2 21. भक्तपरिज्ञा प्रकीर्णक, गाथा 9 22. भत्तपरिन्नामरणं दुविहं सविआरओ य अवियारं।
सपरक्कमस्स मुणिणो संलिहिअतणुस्स सविआरं।।
अपरक्कमस्स काले अप्पहुप्पंतंमि जं तमविआरं।। -भक्तपरिज्ञा प्रकीर्णक, गाथा 10-11 23. सम्पूर्ण विवरण के लिए द्रष्टव्य, आराधनापताका (वीरभद्र) 24. आराधनापताका (वीरभद्र), गाथा 895 25. द्रष्टव्य, वही गाथा 896-900 26. भक्तपरिज्ञा प्रकीर्णक, गाथा 14 27. सम्पूर्ण विवरण के लिए द्रष्टव्य, भक्तपरिज्ञा प्रकीर्णक 28. आराधनापताका (वीरभद्र), गाथा 908 29. वही, गाथा 909 30. वही, गाथा 910 31. वही, गाथा 905-907 32. वही, गाथा 911,919 आदि 33. मरणसमाधि प्रकीर्णक, गाथा 527 34. आराधनापताका (वीरभद्र), गाथा 926 35. पढमिल्लुय संघयणो संलिहियप्पाऽहवा असंलिहिओ।
नीहारिमियर वा पाओवगमं कुणइ धीरो।। -आराधनापताका, गाथा 922

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