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जैन धर्म-दर्शन : एक अनुशीलन
साधना के उत्कृष्ट निदर्शन हैं। चिलातीपुत्र के शरीर को चीटियों के द्वारा छलनी कर दिया गया, किन्तु उन्होनें मन में उनके प्रति थोड़ा भी द्वेष नहीं किया
देहो पिपीलियाहिं चिलाइपुत्तस्स चालणिव्व कओ। तणुओ वि मणपओसो न य जाओ तस्स ताणुवरिं।।
-मरणसमाधि, गाथा 429 स्कन्धक ऋषि के शिष्यों को यन्त्र में पीला गया, किन्तु उन्होंने किञ्चित भी द्वेष नहीं किया। गजसुकुमाल के सिर पर श्वसुर के द्वारा अंगारे रखे गए, फिर भी वे विचलित नहीं हुए।
इस प्रकार की उत्कृष्ट चित्तसमाधि से मरण को प्राप्त होना जीवन की साधना का उत्कृष्ट निदर्शन है। समाधिमरण का फल ___ भक्तपरिज्ञा प्रकीर्णक में समाधिमरण करते समय चार बातें प्रार्थनीय मानी गई हैं- 1. दुःखक्षय, 2. कर्मक्षय, 3. समाधिमरण, 4. बोधिलाभा समाधिमरण से मरने वाला उस जीवन में आत्मा की असीम शक्ति से तो साक्षात्कार करता ही है, किन्तु वह उसी भव में या 3-4 भवों में अथवा अधिकतम 7-8 भवों में अवश्य मोक्ष प्राप्त कर लेता है। समाधिमरण के सोपान ___ समाधिमरण के यद्यपि भक्तप्रत्याख्यान, इंगिनी एवं पादपोपगमन- ये तीन भेद हैं जो उस मरण की विशेषताओं को ही निरूपित करते हैं, किन्तु समाधिमरण की प्रक्रिया के कुछ सामान्य सोपान भी हैं, जिन्हें जानना अत्यन्त आवश्यक है। महाप्रत्याख्यान एवं आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक में पादपोपगमन मरण के प्रसंग में पंडितमरण के चार आलम्बन कहे गए हैं-1. अनशन, 2. पादपोपगमन, 3. ध्यान
और 4. भावना।" अभयदेवसूरि विरचित आराधना प्रकरण में मरणविधि के छः द्वार निरूपित हैं- 1. आलोचना 2. व्रतों का उच्चारण, 3. क्षमापना, 4. अनशन, 5. शुभ भावना और 6. नमस्कार भावना। नन्दन मुनि के द्वारा आराधित आराधना के 6 प्रकार ये हैं- 1. दुष्कार्यों की गर्हा, 2. जीवों से क्षमायाचना, 3. शुभ भावना 4. चतुःशरण ग्रहण, 5. पञ्चपरमेष्ठि- नमस्कार और 6. अनशना पर्यन्ताराधना में