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पर्यावरण-संरक्षण में भोगोपभोग - परिमाणवत की भूमिका
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7. श्रावक के उपभोग-परिभोग व्रत के साथ 15 कर्मादानों की भी चर्चा की जाती
है। उपासकदशांग (प्रथम अध्ययन) एवं आवश्यक सूत्र में श्रावक के लिए 15 प्रकार के धन्धे त्याज्य बताये गए हैं, क्योंकि वे कर्मबंध के महान् कारण हैं। किन्तु विचार किया जाय तो ज्ञात होता है कि ये 15 कर्मादान पर्यावरण को भी प्रदूषित करते हैं। 15 कर्मादानों में मुख्य हैं- अंगार कर्म, वन कर्म, भूमि-खनन कर्म, पशु-भाटक कर्म, दन्त-व्यापार, मद्य-व्यापार आदि। आज वन-संरक्षण को शुद्ध पर्यावरण का महत्त्वपूर्ण घटक माना जाता है । वन का संरक्षण वनकर्म एवं अंगार कर्म का त्याग करने पर स्वतः सहज रूप में हो
सकता है। 8. भोगोपभोग की लालसा ने औद्योगीकरण को जन्म दिया है। औद्योगीकरण के
विकास के साथ ही मशीनों से निकलते धुएँ, कचरे आदि से वायु एवं जल प्रदूषित हुए हैं। भोगोपभोग पर नियन्त्रण इस प्रदूषण को रोकने में अवश्य ही
कारगर उपाय सिद्ध हो सकता है। 9. दूरदर्शन, रेडियो, ध्वनिवर्धक यन्त्र आदि ध्वनि-प्रदूषण में अभिवृद्धि कर रहे
हैं। फ्रिज, एयरकण्डीशनर आदि घर के अन्दर एवं बाहर प्रदूषण फैलाते हैं। इस प्रकार व्यक्ति भोगोपभोग की ओर जितना अधिक लालायित होगा, उतना
ही वह प्रदूषण को आमंत्रण देगा। 10. पशु-पक्षी पर्यावरण को प्रदूषित नहीं करते, क्योंकि उनमें संग्रहवृत्ति नहीं पायी
जाती है। मनुष्य अधिकाधिक भोग-सामग्री का संग्रह करने का अभिलाषी है,
अतः वह पर्यावरण को प्रदूषित करने में सबसे बड़ा घटक है। 11. जब तक भोगोपभोग की मर्यादा नहीं की जाती, तब तक हिंसा, झूठ, चोरी,
अब्रह्मसेवन एवं परिग्रह रूप पापों के सेवन की संभावना अधिकाधिक बनी रहती है, जिनके कारण परोक्ष रूप से पर्यावरण प्रदूषण में वृद्धि होती है। उपसंहार
वायु, जल आदि वस्तुओं का सेवन तभी लाभकारी है जब वे प्रदूषण रहित हों। विकृत या प्रदूषित अवस्था में उनका सेवन हितकर नहीं है। इसलिये हमें उन्हें