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अपरिग्रह की अवधारणा
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सम्बद्ध। शारीरिक, मानसिक एवं मानवीय मूल्यों से सम्बद्ध हानियाँ भी इनमें सम्मिलित हैं।
हृदयहीनता एवं क्रूरता का प्रवेश
धन एवं पदार्थों के संग्रह में लगे व्यक्ति की अन्य मनुष्यों एवं प्राणियों के प्रति संवेदनशीलता प्रायः समाप्त हो जाती है। वह लोभ की मूर्च्छा के कारण अपनी कामनाओं की पूर्ति को ही सर्वोच्च मानता है तथा अन्य प्राणियों के सुख-दुःख की परवाह नहीं करता। वह दूसरों का शोषण करके भी धनवानों की श्रेणी में उच्चतर स्थान प्राप्त करना चाहता है। इस मनोवृत्ति के कारण दूसरों की तो हानि होती ही है, किन्तु स्वयं में भी क्रूरता एवं हृदयहीनता का प्रभाव बढ़ता जाता है। क्रूर एवं हृदयहीन व्यक्ति दूसरों के दुःख में दुःखी नहीं होता तथा वह सबके प्रेम से वंचित होता है। वह सम्पत्तिशाली होकर भी दूसरों से प्रेम पाने में विपन्न हो जाता है । मानवीय प्रेम सम्बन्ध त्याग एवं समर्पण पर जीवित रहते हैं। क्रूर एवं हृदयहीन व्यक्ति स्वयं की सुख-लोलुपता एवं परिग्रह भावना में इतना अन्धा होता है कि वह मानवीय प्रेम भावना का आदर नहीं कर पाता है । वह मौज-मस्ती के लिए तो बड़ी होटलों और क्लबों में जाता है तथा विवाह आदि समारोह में धन का प्रदर्शन कर रुतबा जमाना चाहता है, किन्तु दूसरे की पीड़ा को दूर करने में वह संवेदना शून्य दिखाई देता है। धन की लालसा वाले परिवार प्रायः कलह में जीते हैं, क्योंकि उनमें धन का अभिमान और सुविधा की लिप्सा का स्वार्थ सर्वोपरि होता है। धन का सदुपयोग न करने का दुष्परिणाम
परिग्रही या धनी व्यक्ति परिग्रह के दुष्प्रभाव से तभी बच सकता है जब वह संगृहीत वस्तुओं और धन का सदुपयोग मानव मात्र अथवा प्राणिमात्र के हित में करने को तत्पर हो। जिस प्रकार हमारा भोजन उदर के माध्यम से सभी अंगों को पोषण देता है, उसी प्रकार संग्रह करने वाले के माध्यम से जरूरतमन्दों की आवश्यकताएँ पूर्ण होनी चाहिए | अर्जित धन के सम्बन्ध में जब यह अहंकार होता है कि यह धन मैंने कमाया, यह मेस है, दूसरे के काम में नहीं आ सकता, तो वह धन उस संग्रही व्यक्ति के लिए भी घातक बन जाता है। वह धन या तो उसे विलासिता की ओर ले जाता है या फिर क्रूरता की ओर । विलासी जीवन में