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जैन धर्म-दर्शन : एक अनुशीलन
पालना दुःख को आमन्त्रण देना है। इच्छा की पूर्ति के पश्चात् मनुष्य को जो सुख की प्रतीति होती है, वस्तुतः वह इच्छा या कामना का अभाव होने से होती है। जिन सन्त-महात्माओं के पदार्थ संग्रह की कामना नहीं है, वे उस गृहस्थ की अपेक्षा सुखी देखे जाते हैं, जो कामनाओं के जंजाल में फंसा हुआ है। अतः सुख से जीने के लिए इच्छाओं का परिमाण करना आवश्यक है। अधिक इच्छाओं वाले (महेच्छ) एवं अल्प इच्छा वाले (अल्पेच्छ) मनुष्य में भी महद् अन्तर होता है। यहाँ उनके जीवन के कतिपय अन्तर प्रस्तुत हैंमहेच्छ या परिग्रही मानवका जीवन 1. तनाव ग्रस्त एवं अशान्त 2. अपने समकक्ष जनों के प्रति ईर्ष्या-द्वेष से युक्त 3.प्राप्त सुख-साधनों से असन्तुष्ट, अतः उनसे भी सुखी नहीं 4. रक्तदाब (Blood Pressure), मधुमेह (Diabetes) आदि रोगों से आक्रान्त 5. पारिवारिक कलह एवं अशान्ति 6. दूसरों को कष्ट देकर जीवनयापन 7.आर्थिक असन्तुलन 8. अनैतिकता पूर्वक अर्जन को प्रोत्साहन 9.निष्ठुरता एवं संवेदनहीनता में वृद्धि 10. पर्यावरण प्रदूषण को बढ़ावा 11. अपराध में वृद्धि अल्पेच्छ या परिग्रह परिमाणकर्ता मानव का जीवन 1. अपेक्षाकृत तनावरहित एवं शान्त 2. अपने समकक्षों के प्रति प्रेमभाव, महेच्छों के प्रति भी ईर्ष्या-द्वेष नहीं। 3. प्राप्त सुख-साधनों से सन्तुष्ट 4. अनेकविध रोगों से मुक्त 5. परिवार में अपेक्षाकृत शान्ति एवं सौहार्द का वातावरण 6. दूसरों को कम से कम कष्ट देते हुए जीवन-यापन 7. आर्थिक अभाव की अनुभूति न्यून