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जैन धर्म-दर्शन : एक अनुशीलन
• जीव परस्पर एक-दूसरे के उपकारक हैं। . - • काल का कार्य परिणमन, क्रिया एवं परत्व-अपरत्व (ज्येष्ठत्व-कनिष्ठत्व)है।
इस प्रकार जीव एवं अजीव का परस्पर घनिष्ठ संबंध है। दोनों एक-दूसरे के उपकारक हैं। अजीव का अजीव के साथ एवं जीव का जीव के साथ भी उपकार्य - उपकारक भाव संबंध है। इसलिए निश्चयनय से यह कहना कि किसी एक द्रव्य का दूसरे पर प्रभाव नहीं होता, उपयुक्त प्रतीत नहीं होता । पर्यावरण प्रदूषण की समस्या पर विचार इस तथ्य का द्योतक है कि जीव अजीव से प्रभावित होता है। अजीव में प्रदूषण भी जीवन को दूभर बना देता है। प्रदूषण की समस्या
अतः पर्यावरण प्रदूषण की समस्या वास्तविक है । पर्यावरण के घटकों में किसी प्रकार का दोष उत्पन्न होना पर्यावरण प्रदूषण है। इस प्रदूषण का प्रभाव न केवल दूषित घटक पर होता है, अपितु अन्य घटकों पर भी दृष्टिगोचर होता है। जल में यदि प्रदूषण है तो उसको पीने वाले प्राणी भी रोगग्रस्त होते हुए देखे जाते हैं । वायु का प्रदूषण भी प्राणियों के सामान्य एवं स्वस्थ जीवन को बाधित करता है। इस प्रकार प्रदूषण से न केवल वह प्रदूषित वस्तु प्रभावित होती है, अपितु अन्य वस्तुएँ एवं प्राणी भी प्रभावित होते हैं । अधिकतर प्रदूषण मानव के द्वारा उत्पन्न किए गए हैं। उसके मन में उत्पन्न इच्छाओं, कामनाओं, तृष्णाओं आदि से पहले वह स्वयं प्रदूषित होता है तथा बाद में पर्यावरण के अन्य घटकों को प्रदूषित करता है। इस प्रदूषण का फल फिर स्वयं मनुष्य एवं अन्य प्राणियों को भोगना पड़ता है। पर्यावरण के अजीव घटक में हुए प्रदूषण से हमारा जीवन निश्चित ही प्रभावित होता है, इसीलिए इस प्रदूषण के निराकरण का विचार उठता है।
पर्यावरण प्रदूषण का एक प्रमुख कारण है- 'अमर्यादित भोगोपभोग। आज मनुष्य उपभोग-परिभोग की मर्यादा को लांघ चुका है । वह अधिकाधिक भोग-साम्रगी की उपलब्धि को विकास का सूचक मानता है । धनी राष्ट्र भौतिक सुख-सुविधाओं में निरन्तर अभिवृद्धि करते हुए प्राकृतिक संसाधनों का अधिकाधिक दोहन कर रहे हैं । प्राकृतिक सम्पदा के दोहन का अतिरेक एक प्रकार का शोषण है, जो भावी पीढ़ी के लिए अभिशाप है । आज मनुष्य कृत्रिम उर्वरकों,