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जैनागम साहित्य में अहिंसा हेतु उपस्थापित युक्तियाँ
सप्रयोजन हिंसा को भी यतना, विवेक या समिति के माध्यक से न्यून किया जाए तो समस्त मानवजाति एवं सम्पूर्ण प्राणिजगत् को शान्ति, सुख, समृद्धि एवं आनन्द का अनुभव हो सकता है। आचार्य समन्तभद्र ने कहा भी है- अहिंसा भूतानां जगति विदितं ब्रह्म परमम् ।" जगत् में अहिंसा समस्त प्राणियों के लिए परम ब्रह्म है I समस्त जगत् के जीवों के प्रति वात्सल्यभाव से पूरित तीर्थकरों ने इसीलिए अहिंसा का उपदेश दिया है- एसा सा भगवई अहिंसा जा सा अपरिमिय- णाणदंसणधरेहिं सील - गुण - विणयतवसंजमणायगेहिं तित्थकरेहिं सव्वजगजीववच्छलेहिं तिलोयमहिएहिं जिणवरेहिं सुटठु दिट्ठा ।”
11. करुणा जीव का स्वभाव है
हिंसा का निषेध ही अहिंसा नहीं है, अपितु अहिंसा का सकारात्मक पक्ष भी है, जो करुणा, अनुकम्पा, दया, मैत्री आदि के रूप में अभिव्यक्त होता है । अन्य जीवों के प्रति आत्मवद्भाव के साथ उनके दुःख-दर्द को दूर करने की भावना भी अहिंसा का ही विस्तार है। एक-दूसरे जीव का निरवद्य एवं हितावह उपग्रह करना जीव के स्वाभाविक लक्षण में सम्मिलित है- परस्परोपग्रहो जीवानाम्।" षट्खण्डागम की धवला टीका में करुणा को जीव का स्वभाव निरूपित किया गया - करुणाए जीवसहावस्स कम्मजणिदत्तविरोधादो ।"
करुणा के साथ अनुकम्पा पर भी बल दिया गया है । अनुकम्पा को सम्यग्दर्शन का एक लक्षण स्वीकार किया गया है । इसी प्रकार धर्म उसे कहा गया है जहाँ दया है | भगवान ने सब जीवों की रक्षा एवं दया के लिए प्रवचन फरमाया था। 12 जैनागमों में सब जीवों के प्रति मैत्री का संदेश मिलता है। इस प्रकार अहिंसा के सकारात्मक पक्ष की प्रस्तुति के साथ अहिंसा को आगमों में स्थापित करने का प्रयत्न किया
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गया है।
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सारांश यह है कि आगमों में विभिन्न स्थलों पर भिन्न-भिन्न प्रकार से अहिंसा के पालन एवं हिंसा के त्याग की प्रेरणा की गई है। यह अहिंसा व्यक्तिगत स्तर पर भी कल्याणकारिणी है तो समाज एवं राष्ट्र के स्तर पर भी मंगलविधात्री है। पर्यावरण प्रदूषण, भ्रष्टाचार, आतंकवाद जैसी आधुनिक विश्व की समस्याओं का समाधान भी अहिंसा के माध्यम से सम्भव है। पर्यावरण का प्रदूषण हिंसा - जन्य है।