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जैन धर्म-दर्शन : एक अनुशीलन
प्रकार के प्राणियों की हिंसा की जा रही है। यह हिंसा मनुष्य की निर्दयता एवं क्रूरता की परिचायक है। ___ मनुष्य अपने को बलवान् एवं बुद्धिमान समझता है, इसलिए वह सृष्टि के अन्य जीवों की स्वतन्त्रता को दर किनार कर उनके जीवन के प्रति बेपरवाह हो गया है। वह अपनी सुख-सुविधाओं के लिए उनका हनन करने में कोई संकोच नहीं करता। सत्ता, सम्पत्ति आदि की प्राप्ति के लिए मनुष्य अपना बल बढ़ाने में लगा रहता है। वह शरीरबल, ज्ञातिबल, मित्रबल, राजबल, धनबल, शस्त्रबल आदि बल बढ़ाता है और दूसरों को परास्त करने में हिंसा का सहारा लेता है। आज मनुष्य अपनी बुद्धि एवं बल का दुरुपयोग हिंसा के कार्यों में कर रहा है।
हिंसा का एक प्रमुख कारण अज्ञान है। प्रायः मनुष्य अज्ञान में जीता है। उसे यह भलीभांति ज्ञात नहीं है कि उसके द्वारा की जा रही हिंसा का परिणाम उसे स्वयं को क्या मिलने वाला है? हिंसा करने एवं कष्ट देने का प्रतिफल स्वयं को भी कष्ट रूप में भोगना पड़ता है। बम विस्फोट आदि के द्वारा की गई हिंसा का परिणाम बहुसंख्यक प्राणियों को भोगना पड़ता है। कभी बृहत्स्तर पर कृत हिंसा समूची मानवजाति एवं प्राणिजगत् के लिए भी अत्यन्त दर्दनाक होती है।
आतुरता भी मनुष्य को हिंसा के लिए प्रेरित करती है। कामातुर व्यक्ति को अपनी वासना या कामना की पूर्ति महत्त्वपूर्ण प्रतीत होती है। वह यौन उत्पीड़न, बलात्कार आदि से लेकर हत्या, गृहदाह, ग्रामदाह आदि के लिए संरम्भ एवं समारम्भ करने हेतु तत्पर हो जाता है। अनेकविध भयों से आक्रान्त व्यक्ति भी आतुर होकर भय के कारणों का नाश करने के लिए हिंसा का आलम्बन लेता है। क्षुधा से पीड़ित (क्षुधातुर) व्यक्ति यदि विवेकशील न हो तो वह भी दूसरे प्राणियों के प्राणों का प्यासा होकर हिंसा में प्रवृत्त होता है।गरीबी एवं बेरोजगारी इसीलिए हिंसा में कारण बनती हैं। आजीविका के अभाव से त्रस्त जन लूटपाट एवं हिंसा में संलग्न होकर उदरपूर्ति करने लगते हैं। आधुनिक युग में युवापीढ़ी हेरोइन आदि विभिन्न प्रकार की नशीली ड्रग के सेवन की आदि हो गई है। उसके पास जब पैसे नहीं होते हैं तथा ड्रग की तलफ उठती है तो वह हिंसा कर पैसा जुटाती है। यह भी आतुरता के कारण हिंसा है।