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जैन धर्म-दर्शन : एक अनुशीलन
परमाणु के द्रव्य परमाणु, क्षेत्र परमाणु, काल परमाणु एवं भाव परमाणु के आधार पर चार प्रकार कहे गए हैं। इनमें हम प्रायः जिस परमाणु की चर्चा करते हैं वह द्रव्य परमाणु है। द्रव्य परमाणु अच्छेद्य, अभेद्य, अदाह्य एवं अग्राह्य होता है। क्षेत्र परमाणु को अनर्द्ध (जिसका आधा भाग न हो), अमध्य (जिसका कोई केन्द्र या मध्य भाग न हो), अप्रदेश (जिसका कोई प्रदेश न हो), तथा अविभाज्य स्वीकार किया गया है। काल परमाणु को अवर्ण, अगन्ध, अरस एवं अस्पर्श अर्थात् वर्ण, गन्ध, रस, एवं स्पर्श से रहित प्रतिपादित किया गया है । भाव परमाणु वर्णवान्, गन्धवान्, रसवान् एवं स्पर्शवान् होता है। पुद्गल परमाणु द्रव्य एवं भावरूप है।
द्रव्य परमाणुओं के संघात से द्विप्रदेशी, त्रिप्रदेशी आदि सूक्ष्म पुद्गल बनते हैं तथा उनके संघात से स्थूल पुद्गल निर्मित होते हैं। द्रव्य की दृष्टि से परमाणु शाश्वत हैं, किन्तु पर्याय की अपेक्षा अशाश्वत हैं, क्योंकि पर्याय निरन्तर बदलती रहती है। समस्त पुद्गलों में परिर्वतन होता रहता है, किन्तु उनमें आधारभूत कुल परमाणुओं की संख्या लोक में समान ही रहती है। वह न्यूनाधिक नहीं होती है। परमाणु का स्कन्ध में एवं स्कन्ध का परमाणु में परिवर्तन होता रहता है । स्कन्ध के भेदन से परमाणु तथा परमाणुओं के संघात से स्कन्ध निर्मित होते हैं। संख्या की दृष्टि से परमाणु अनन्त हैं। ये जब गति करते हैं तो प्रकाश की भाँति अनुश्रेणि अर्थात् सीधी गति करते हैं। किसी प्रतिघात के कारण ही इनकी गति में मोड़ उत्पन्न होता है। ___ परमाणु की गति के सम्बन्ध में कहा गया है कि एक परमाणु पुद्गल लोक के पूर्वी चरमान्त से पश्चिमी चरमान्त तक, उत्तरी चरमान्त से दक्षिणी चरमान्त तक, नीचे के चरमान्त से ऊपर के चरमान्त तक एक समय (काल की सूक्ष्मतम इकाई) में गति कर सकता है। यह गति आधुनिक विज्ञान में स्वीकृत प्रकाश की गति से भी अधिक है। अतः विज्ञान के द्वारा यह अन्वेषणीय है कि क्या कोई पुद्गल (Particle) प्रकाश की गति से भी तीव्र गति कर सकता है।
परमाणु सूक्ष्मतम होने के कारण उसका कोई प्रदेश या अवयव नहीं होता, किन्तु तीन कारणों से परमाणु पुद्गल का प्रतिघात (गतिभङ्ग) स्वीकार किया गया है1. एक परमाणु दूसरे परमाणु पुद्गल को प्राप्त कर प्रतिहत होता है। (वह कदाचित्