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'इसिभासियाइंका दार्शनिक विवेचन
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णपाणे अतिवातेज्जा, अलियादिण्णंचवज्जए।
मेहुणं च ण सेवेज्जा, भवेज्जा अपरिग्गहे।।" पैंतालीसवें वैश्रमण अध्ययन में अहिंसा की प्रतिष्ठा करते हुए कहा गया है कि जिस प्रकार शस्त्र प्रयोग से या अग्नि से स्वयं के शरीर में घाव या जलन की वेदना होती है, उसी प्रकार अन्य जीवों को भी हिंसा से वेदना का अनुभव होता है। प्राणघात सब प्राणियों को अप्रिय है तथा दया सबको प्रिय है। इस तथ्य को जानकर प्राणिघात का वर्जन करना चाहिए। अहिंसा सब प्राणियों को शान्ति उपजाने वाली है, यह सब प्राणियों में अनिन्दित ब्रह्म है। ___ आचारमीमांसा के अन्तर्गत साध्वाचार प्रमुख है। साध्वाचार के अन्तर्गत चातुर्याम धर्म अथवा पंच महाव्रत के अतिरिक्त पाँच समिति, तीन गुप्ति आदि का भी विशेष महत्त्व है। इसिभासियाइं में इनका भी यथावसर उल्लेख हुआ है। साधु के लिए स्वाध्याय और ध्यान का विधान है। इसका संकेत विदु ऋषि ने किया है, यथा
सज्झायझाणोवगतो जितप्पा, संसारवासं बहुधा विदित्ता।
सावज्जवुत्ती करणेऽठितप्पा, निरवज्जवित्तीतुसमायरेज्जा। आत्मजेता मुनि स्वाध्याय एवं ध्यान में संलग्न होकर संसार के कारणों को बहुधा जानकर सावद्यवृत्ति कार्यों में अपने को नहीं लगाता, अपितु वह निरवद्य (निष्पाप) कार्य का आचरण करता है। ___ साधु के लिए सावध अर्थात् पापकारी कार्य अकरणीय हैं तथा निरवद्य कार्य करणीय हैं। मोक्ष का स्वरूप
जैनदर्शन में ज्ञानावरणादि अष्टविध कर्मों के क्षय को मोक्ष कहा जाता है, किन्तु 'इसिभासियाइं' में ऐसा लक्षण प्राप्त नहीं होता। मोक्ष का स्वरूप यहाँ देविल, महाकाश्यप, रामपुत्र आदि ऋषियों के वचनों में अभिव्यक्त हुआ है, तदनुसार वह शिव, अचल, अरुज, अक्षय, अव्याबाध और अपुनरावृत्त शाश्वत स्थान है। जो मोक्ष को प्राप्त करता है उसके विशेषण लगभग प्रत्येक अध्ययन में दिए गए हैं,