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जैन धर्म-दर्शन : एक अनुशीलन
विवेकयुक्त होकर करो। बालक को सही मार्ग पर लाने के लिए यदि डांटना पड़े तो यतनापूर्वक डांटो। चलना, बोलना, खाना आदि सभी क्रियाएँ यतनापूर्वक की जानी चाहिए। ___ अहिंसा की स्थापना के लिए करुणा भाव एवं संवेदनशीलता की आवश्यकता है, किन्तु साथ ही प्रमाद एवं अयतना का त्याग भी आवश्यक है। बिना विवेक एवं यतना के संवेदनशीलता का दुरुपयोग भी संभव है। विश्वहित या समाजहित में सोचा जाय तो अपने क्षुद्र स्वार्थ या सुख की पूर्ति के लिए निरपराध प्राणियों का जीवन ले लेना नितांत घृणित है। निष्करुण प्राणी अहिंसक नहीं हो सकता। जो दूसरों के दुःख को अपने दुःखों के सदृश समझता है वही दयार्द्र होकर दूसरे के दुःख को हलका करने में, उसे सान्त्वना देने में समर्थ हो पाता है। जीवों की परस्पर उपकारकता ___सामाजिक-जीवन एक दूसरे प्राणियों के सहयोग से चलता है। माता यदि शिशु को दूध न पिलाकर प्रताड़ित करे तो उसका शिशु पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। वही माता शिशु को समय पर दूध पिलाए एवं प्यार दे तो वह शिशु के लिए जीवनदायिनी सिद्ध होती है। करुणा एवं प्यार, सेवा एवं मैत्री से अहिंसक समाज का निर्माण होता है तो आतंक, भय एवं हिंसा से हिंसक तथा अशान्त समाज का निर्माण होता है।
_ 'परस्परोपग्रहो जीवानाम्' सूत्र इस रहस्य का निरूपण करता है कि जीव परस्पर एक दूसरे के उपकारक होते हैं। माता अपने पुत्र पर उपकार कर उसका लालन-पालन करती है। पुत्र भी माता-पिता का सहयोग करता है। परस्पर सहयोग से ही बड़े-बड़े कार्य सम्पन्न हो पाते हैं। स्वामी-भृत्य, गुरु-शिष्य आदि एक दूसरे के उपकारक हैं। यह उपकार अहिंसा, मैत्री एवं करुणा के साथ ही सम्भव है। ___ 'प्रश्नव्याकरणसूत्र' में तीन प्रकार के हिंसकों का संकेत किया गया है- कुद्धा हणंति, लुद्धा हणंति, मुद्धा हणंति। अर्थात् या तो जीव क्रोध के कारण हिंसा करते हैं, या लोभ के वशीभूत होकर हिंसा करते हैं, या फिर वे अज्ञानतावश हिंसा करते हैं। कभी वे सप्रयोजन हिंसा करते हैं तो कभी निष्प्रयोजन हिंसा करते हैं। हिंसा के