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जैन धर्म-दर्शन : एक अनुशीलन
निक्षेप __शब्द का समुचित अर्थ खोजने का कार्य जिस विधि से हो, उसे निक्षेप कहते हैं । तत्त्वार्थसूत्र में इसे न्यास भी कहा गया है। निक्षेप के चार प्रकार हैं- 1. नाम निक्षेप, 2. स्थापना निक्षेप, 3. द्रव्य निक्षेप और 4. भाव निक्षेप । 1. नाम निक्षेप :- शब्द के व्युत्पत्तिपरक अर्थ के बिना ही किसी व्यक्ति, वस्तु
आदि का नामकरण करना 'नाम निक्षेप' है। जैसे- किसी अन्धी महिला का नाम सुनयना है। 'सुनयना' शब्द का अर्थ होता है- अच्छे नेत्रों वाली, किन्तु यह अर्थ अन्धी महिला के सन्दर्भ में घटित नहीं होता है। सुनयना केवल उसका नाम है। अर्थ से इसका कोई लेना-देना नहीं है। इस प्रकार संसार में बहुत-सी वस्तुओं को जानने हेतु संकेत रूप में नाम रखा जाता है। इसलिए किसी डरपोक का नाम भी 'नाम निक्षेप ' से 'महावीर' हो सकता है। 2. स्थापना निक्षेप:- मूल या वास्तविक वस्तु न हो, किन्तु उसकी मूर्ति, चित्र,
प्रतिकृति आदि में उसका आरोप किया गया हो, तो उसे 'स्थापना निक्षेप' कहते हैं। जैसे- रामचन्द्र जी की मूर्ति को राम समझना, हनुमान के चित्र को हनुमान समझना, फिल्म, नाटक आदि में अभिनेता को वास्तविक नायक समझना आदि स्थापना निक्षेप के उदाहरण हैं। स्थापना निक्षेप के दो प्रकार हैं1. सद्भाव स्थापना, 2. असद्भाव स्थापना। जब कोई चित्र, प्रतिकृति आदि मुख्य आकार के समान हो तो उसे सद्भाव स्थापना निक्षेप कहते हैं। जैसेकबूतर का चित्र, कबूतर को ही बतलाता है। महात्मा गाँधी की ऐनक युक्त मूर्ति उनके वास्तविक आकार का बोध कराती है। जब कोई मूर्ति आदि वास्तविक वस्तु के आकार से रहित होती है, तो उसे असद्भाव स्थापना निक्षेप
कहते हैं, जैसे- किसी पत्थर को देवता मान लेना आदि। 3. द्रव्य निक्षेप :- भूत या भावी अवस्था के कारण वस्तु, व्यक्ति आदि में
वर्तमान में भी वैसा प्रयोग करना 'द्रव्य निक्षेप' है। यह द्रव्य निक्षेप भाव निक्षेप का पूर्व रूप या उत्तर रूप होता है। जैसे- मेडिकल कॉलेज में पढ़ने वाले छात्र को भविष्य में डॉक्टर बनने के आधार पर वर्तमान में ही डॉक्टर कहना। इसी प्रकार तहसीलदार या पटवारी आदि पदों से सेवानिवृत्त व्यक्ति को भूतकाल के