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आगम- साहित्य में पुद्गल एवं परमाणु
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रुक्ष की गणना होती है। पंचप्रदेशी स्कन्ध में पाँचों वर्ण एवं पाँचों रस का होना सम्भव है। असंख्यात प्रदेशी स्कन्ध में पाँच वर्ण, दो गन्ध, पाँच रस एवं चार स्पर्श पाए जाते हैं। अनन्तप्रदेशी स्कन्ध भी सूक्ष्म हो सकता है, जिसमें भी इतने ही वर्णादि उपलब्ध होते हैं। 3 बादर परिणत अनन्त प्रदेशी स्कन्ध प्रायः अष्ट स्पर्शी होता है । उसमें स्पर्श के आठों भेद पाए जाते हैं। वह कभी चतुःस्पर्शी भी हो सकता है। तब बादर पुद्गल में कर्कश एवं मुदु में से तथा गुरु-लघु में से कोई न कोई स्पर्श अवश्य पाया जाता है । बादर पुद्गल
बादर अर्थात् स्थूल पुद्गल अनन्तप्रदेशी स्कन्ध वाला होता है । वह कदाचित् एक वर्णवाला यावत् कदाचित् पाँच वर्ण वाला होता है। कदाचित् एक गन्ध वाला और कदाचित् दो गन्ध वाला होता है । कदाचित् एक रस वाला यावत् कदाचित् पाँच रस वाला होता है। कदाचित् चतुःस्पर्शी यावत् कदाचित् अष्टस्पर्शी होता है। यदि बादर पुद्गल चतुःस्पर्शी हो तो वह कदाचित् सर्वकर्कश, सर्वगुरु, सर्वशीत एवं सर्व स्निग्ध होता है। वह कदाचित् सर्वकर्कश, सर्वगुरु, सर्व उष्ण और सर्व स्निग्ध होता है । चतुःस्पर्शी के इस प्रकार सोलह भंग होते हैं, जिनमें मृदु या कर्कश, लघु या गुरु, उष्ण या शीत एवं स्निग्ध या रुक्ष में से एक-एक स्पर्श पाये जाते हैं। " चतुःस्पर्शी सूक्ष्म पुद्गल में उष्ण, शीत, स्निग्ध एवं रुक्ष स्पर्श ही पाए जाते हैं। मृदु, कर्कश, लघु, गुरु में से कोई नहीं पाया जाता।
आधुनिक विज्ञान के अनुसार विचार किया जाए तो स्निग्ध स्पर्श धनात्मक आवेश का सूचक है तथा रुक्ष स्पर्श ऋणात्मक आवेश का सूचक है। इसी प्रकार गुरु एवं लघु स्पर्श आपेक्षिक भार का सूचन करते हैं। यदि किसी पुद्गल को भारहीन कहा जाए तो वह गुरु- लघु स्पर्श से रहित होता है ।
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हमें प्रायः अष्टस्पर्शी बादर पुद्गलों का ही बोध होता है । इन्द्रियों के माध्यम से हम उन्हें ही जानते हैं ।
वर्गणाएँ
समान प्रकार के पुद्गलों के समूह को वर्गणा कहा जाता है। स्थानांगसूत्र में वर्गणा के अनेक प्रकारों का कथन हुआ है । उदाहरण के लिए परमाणु पुद्गलों की वर्गणा