________________
101
कारण-कार्य सिद्धान्त एवं पंचकारण-समवाय
प्रवृत्तः।” कि वे लोक के विनाशकर्ता काल हैं। सारी ज्योतिर्विद्या कालाश्रित है । काल के ही आधार पर ज्योतिर्विद्या में गणित एवं फलित निष्पादित किए गये हैं।
19
भारतीय दर्शन भी काल की चर्चा करते हैं, किन्तु वे कालवादी नहीं हैं, क्योंकि वे एक मात्र काल से कार्य की उत्पत्ति नहीं मानते। काल को भारतीय दर्शन में प्रायः साधारण निमित्त कारण माना गया है। वैशेषिक दर्शन इसे द्रव्य मानता है तथा इसे एक, नित्य, व्यापक एवं अमूर्त स्वीकार करता है। उसके अनुसार काल की सिद्धि ज्येष्ठत्व, कनिष्ठत्व, क्रम, यौगपद्य, चिर, क्षिप्र आदि प्रत्ययों से होती है । " न्यायदर्शन में मान्य 12 प्रमेयों में काल की गणना नहीं हुई है, किन्तु प्रकारान्तर से न्यायदर्शन में काल को अवश्य स्वीकार किया गया है। उदाहरणार्थ मन की सिद्धि करते हुए अक्षपाद गौतम कहते हैं- "युगपज्ज्ञानानुत्पत्तिर्मनसो लिङ्गम्।” ( न्यायसूत्र 1.1.16 ) यहाँ युगपत् शब्द काल का ही बोधक है। एक अन्य स्थल पर दिशा, देश और आकाश के साथ काल शब्द का भी कारणता के सम्बन्ध में प्रयोग किया गया है।° सांख्यदर्शन में काल को आकाश तत्त्व का ही स्वरूप माना गया है। 21 योगदर्शन में क्षण को वास्तविक तथा क्रम को अवास्तविक स्वीकार किया गया है, क्योंकि दो क्षण कभी भी साथ नहीं रहते हैं। पहले वाले क्षण के अनन्तर दूसरे क्षण का होना ही क्रम कहलाता है, इसलिए वर्तमान एक क्षण ही वास्तविक है, पूर्वोत्तर क्षण नहीं | मुहूर्त्त, अहोरात्र आदि जो क्षण समाहार रूप व्यवहार है वह बुद्धिकल्पित है, वास्तविक नहीं। 2 मीमांसादर्शन में काल का स्वरूप वैशेषिक दर्शन के समान माना गया है, किन्तु वैशेषिक जहाँ काल को अप्रत्यक्ष मानते हैं वहाँ मीमांसक उसे प्रत्यक्ष स्वीकार करते हैं। 23 अद्वैतवेदान्त में काल को व्यावहारिक रूप से स्वीकार किया गया है। शुद्धाद्वैत दर्शन में काल को अतीन्द्रिय होने से कार्य से अनुमित स्वीकार किया गया है। 24 व्याकरणदर्शन में भर्तृहरि के वाक्यपदीय में तृतीयकाण्ड का 'कालसमुद्देश' काल के स्वरूप एवं भेदों की चर्चा से सम्पृक्त है। टीकाकार लाराज ने काल को अमूर्त क्रिया के परिच्छेद का हेतु निरूपित किया है - "कालोऽमूर्तक्रिया - परिच्छेदहेतुः " " बौद्धदर्शन में भी काल को भूत, वर्तमान एवं भविष्य के रूप में स्वीकार किया गया है तथा क्षणिक पदार्थ की व्याख्या करते हुए वे काल को भी महत्त्व देते हैं। हाँ, बौद्धदर्शन में क्षणस्थायी घटादि पदार्थ को भी