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जैन धर्म-दर्शन : एक अनुशीलन
1. नीयतेपरिच्छिद्यते एकदेशविशिष्टोऽर्थः आभिरितिनीतयो नयाः।
-अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, श्लोक 28 पर स्याद्वादमंजरी टीका जिनके द्वारा वस्तु के एक अंश का ज्ञान किया जाता है वे नय हैं। 2. नयोज्ञातुरभिप्रायो।
-अकलंकग्रन्थत्रय, लघीयस्त्रय, कारिका 30 की वृत्ति एवं प्रमाणसंग्रह, कारिका 86 ज्ञाता का अभिप्राय नय है। 3. जावइयावयणपहातावइयाचेवहाँतिणयवाया-सन्मतितर्कप्रकरण, 3-47
जितने वचनमार्ग हैं उतने नयवाद होते हैं। 4. नीयतेगम्यते येन श्रुतार्थांशोनयो हिसः।
-तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक, नयविवरण, श्लोक 20 श्रुतज्ञान के द्वारा जाने गए पदार्थ का अंश जिसके द्वारा जाना जाता है, वह
नय है। 5. अनिराकृतप्रतिपक्षोवस्त्वंशग्राही ज्ञातुरभिप्रायो नयः । प्रमेयकमलमार्तण्ड, पृ. 676
प्रतिपक्ष का निराकरण न करने वाला तथा वस्तु के अंश को ग्रहण करने वाला,
ज्ञाता का अभिप्राय नय कहलाता है। 6. प्रमाणप्रतिपन्नाथैकदेशपरामर्शी नयः स्याद्वादमंजरी,श्लोक 28 की टीका, पृ. 242
प्रमाण के द्वारा ज्ञात अर्थ के एक अंश को जानने वाला ज्ञान नय है। 7. प्रमाणपरिच्छिन्नस्यानन्तधर्मात्मकस्य वस्तुन एकदेशग्राहिणस्तदितरांशाप्रति
क्षेपिणोऽध्यवसायविशेषानयाः। जैन तर्कभाषा, नय परिच्छेद
प्रमाण के द्वारा ज्ञात अनन्तधर्मात्मक वस्तु के एक देश को ग्रहण करने वाले तथा उसके अन्य अंशों का प्रतिक्षेप नहीं करने वाले अध्यवसाय (ज्ञान) विशेष को नय कहा गया है। 8. निरपेक्षानया मिथ्या, सापेक्षावस्तुतेऽर्थकृत्आप्तमीमांसा, कारिका 108
निरपेक्ष नय मिथ्या होते हैं तथा सापेक्ष नय वास्तविक होते हैं, क्योंकि वे अर्थ क्रियाकारी होते हैं।
नय के उपर्युक्त लक्षणों से नय की अग्रांकित विशेषताओं का बोध होता है1. प्रमाण की भांति नय भी ज्ञानात्मक होता है, क्योंकि अभिप्रायविशेष को नय