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नय एवं निक्षेप
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विधि आदि प्रथम छह नय द्रव्यार्थिक नय के अन्तर्गत तथा शेष छह पर्यायार्थिक नय के अन्तर्गत हैं। इसके अतिरिक्त उन्होंने प्रसिद्ध नैगमादि सात नयों के साथ भी इन बारह नयों का सम्बन्ध बतलाया है, तननुसार प्रथम नय व्यवहार नय में, दूसरे से चौथे तक के नय संग्रहनय में, पाँचवाँ और छठा नय नैगम नय में, सातवां नय ऋजुसूत्रनय में, आठवां एवं नवमां नय शब्दनय में, दसवां नय समभिरूढ़ नय में तथा ग्याहरवां व बारहवां एवंभूतनय में समाविष्ट होता है।
माइल्लधवल कृत द्रव्यस्वभावप्रकाशक नयचक्र तथा देवसेनकृत आलापपद्धति एवं श्रुतभवन-दीपक-नयचक्र में अनेकविध नयों का वर्णन हुआ है। डा. हुकमचन्द भारिल्ल ने प्रवचनसार की तत्त्वप्रदीपिका टीका आदि के आधार पर 'परमभावप्रकाशक नयचक्र' नामक पुस्तक में 47 नयों का विवेचन किया है। उनके द्वारा विवेचित नयों के नाम इस प्रकार हैं- 1. द्रव्यनय 2. पर्यायनय 3. अस्तित्व नय 4. नास्तित्व नय 5. अस्तित्व नास्तित्व नय 6. अवक्तव्य नय 7. अस्तित्व अवक्तव्य नय 8. नास्तित्व अवक्तव्य नय 9. अस्तित्व नास्तित्व अवक्तव्य नय 10. विकल्प नय 11. अविकल्प नय 12. नामनय 13. स्थापना नय 14. द्रव्यनय 15. भावनय 16. सामान्य नय 17. विशेषनय 18. नित्यनय 19. अनित्यनय 20. सर्वगतनय 21. असर्वगतनय 22. शून्य नय 23. अशून्य नय 24. ज्ञानज्ञेय अद्वैतनय 25. ज्ञानज्ञेय द्वैतनय 26. नियतिनय 27. अनियतिनय 28. स्वभावनय 29. अस्वभावनय 30. कालनय 31. अकालनय 32. पुरुषकारनय 33. दैवनय 34. ईश्वर नय 35. अनीश्वरनय 36. गुणीनय 37. अगुणीनय 38. कर्तृनय 39. अकर्तृनय 40. भोक्तृनय 41. अभोक्तृनय 42. क्रियानय 43. ज्ञाननय 44. व्यवहारनय 45. निश्चयनय 46. अशुद्वनय और 47. शुद्वनया" द्रव्यार्थिक एवं पर्यायार्थिक नय
जैनदर्शन में प्रमुखतः दो प्रकार के नय हैं- 1. द्रव्यार्थिक नय 2. पर्यायार्थिक नय । द्रव्य को प्रधान बनाकर जब ज्ञान या कथन किया जाता है तो उसे द्रव्यार्थिक नय कहा जाता है तथा जब पर्याय को प्रधान बनाकर ज्ञान या कथन किया जाता है तो उसे पर्यायार्थिक नय कहा जाता है। व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्र में इन दो नयों का प्रचुर प्रयोग हुआ है। द्रव्य, क्षेत्र, काल एवं भाव से विभक्त कर विभज्यवादपूर्वक समाधान