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अनेकान्तवाद का स्वरूप और उसके तार्किक आधार
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नित्यानित्यात्मक (अनेकान्तात्मक) वस्तु में अर्थक्रिया घटित हो जाती है और अर्थक्रिया ही वस्तु का लक्षण मानी गई है। भट्ट अकलंक ने इस प्रकार का तर्क अपने ग्रन्थ 'लघीयस्त्रय' में दिया है
अर्थक्रियानयुज्येत, नित्यक्षणिकपक्षयोः।
क्रमाक्रमाभ्यां भावानांसा हि लक्षणतयामता।" नित्य एवं क्षणिक पक्ष में न तो क्रम से अर्थक्रिया घटित हो सकती है और न अक्रम से। यहाँ पर उल्लेखनीय है कि वस्तु का लक्षण अर्थक्रियाकारित्व सर्वप्रथम बौद्धों ने दिया है । वे वस्तु को स्वलक्षण भी कहते हैं। दिङ्नाग के टीकाकार जिनेन्द्रबुद्धि ने वस्तु का लक्षण देते हुए कहा है- तत्र यदर्थक्रियासमर्थ तदेव वस्तु स्वलक्षणमिति।" धर्मकीर्ति ने कहा है- अर्थक्रियासामर्थ्यलक्षणत्वाद् वस्तुनः। अर्थक्रिया को वस्तु का लक्षण मानकर बौद्धों ने नित्यत्व का खण्डन किया है और अर्थक्रिया का घटित नहीं होना सिद्ध किया है । जयन्त भट्ट ने क्षणिक स्वलक्षण में अर्थक्रियाकारित्व का खण्डन किया है, किन्तु भट्ट अकलंक आदि दार्शनिकों ने नित्यवाद एवं क्षणिकवाद दोनों में ही वस्तु के अर्थक्रियाकारित्व का खण्डन करते हुए उसे अनेकान्तात्मक वस्तु में सिद्ध किया है। वस्तु को नित्य मानने पर उसमें न क्रम से अर्थक्रिया संभव है और न युगपद्, क्योंकि क्रम से अर्थक्रिया करने पर उसकी नित्यता भंग हो जाती है तथा युगपद् अर्थक्रिया करने पर अगले क्षण वह अकिञिचत्कर हो जाती है। उसी प्रकार अर्थ को क्षणिक मानने पर उसमें क्रम से अर्थक्रिया संभव नहीं है, क्योंकि क्षणिक अर्थ में अनेक वस्तुओं को उत्पन्न करने के नाना स्वभाव नहीं हो सकते।
'प्रमाणमीमांसा' में हेमचन्द्र ने द्रव्यपर्यायात्मक वस्तु को ही अर्थक्रिया में समर्थ स्वीकार करते हुए क्षणिक एवं नित्यपक्ष में अर्थक्रिया घटित न होने का विस्तार से निरूपण किया है। उन्होंने सामान्य एवं विशेष को पृथक् पदार्थ मानने वाले वैशेषिकों का भी प्रबलरूपेण तर्कपुरस्सर खण्डन किया है। जैन दर्शन में मान्य सामान्यविशेषात्मक या द्रव्यपर्यायात्मक वस्तु में अर्थक्रिया किस प्रकार घटित होती है, इस संबंध में माणिक्यनन्दि, वादिदेवसूरि एवं हेमचन्द्र ने मार्ग प्रशस्त किया है। हेमचन्द्र कहते हैं