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जैन धर्म-दर्शन : एक अनुशीलन
एक है । द्विप्रदेशी स्कन्धों की यावत् अनन्त प्रदेशी स्कन्धों की एक-एक वर्गणा है। आकाश के एक प्रदेश को अवगाहन कर रहने वाले पुद्गलों की वर्गणाएँ भी एक-एक हैं। समय की अपेक्षा एक समय की स्थिति वाले पुद्गलों की वर्गणा एक है। इसी प्रकार दो समय की स्थिति वाले यावत् असंख्यात समय की स्थिति वाले पुद्गलों की वर्गणा एक-एक है। एक गुण काले पुद्गलों की वर्गणा एक है। इसी प्रकार दो गुण काले पुद्गलों की यावत् असंख्यात गुण काले पुद्गलों की वर्गणा एक-एक है। अनन्त गुण काले पुद्गलों की वर्गणा एक है। इसी प्रकार सभी वर्ण, गन्ध, रस एवं स्पर्श के एक गुण नीले यावत् अनन्त गुण रुक्ष स्पर्श वाले पुद्गलों की वर्गणा एक-एक है। जघन्य प्रदेशी स्कन्धों की वर्गणा एक है एवं उत्कृष्ट प्रदेशी स्कन्धों की भी वर्गणा एक है। अजघन्य अनुत्कृष्ट (मध्यम) प्रदेशी स्कन्धों की वर्गणा एक है । इसी प्रकार जघन्य अवगाहना वाले स्कन्धों की, उत्कृष्ट अवगाहना वाले स्कन्धों की और मध्यम अवगाहना वाले स्कन्धों की वर्गणा एक है। जघन्य स्थिति वाले स्कन्धों की, उत्कृष्ट स्थिति वाले स्कन्धों की तथा मध्यम स्थिति वाले स्कन्धों की वर्गणा एक है। जघन्य गुण वाले स्कन्धों, उत्कृष्ट गुण वाले स्कन्धों एवं मध्यम गुण वाले स्कन्धों की वर्गणाएँ एक-एक हैं। इसी प्रकार शेष सभी वर्ण-गन्ध रस एवं स्पर्शो के जघन्य गुण, उत्कृष्ट गुण और मध्यम गुण वाले पुद्गलों की वर्गणा एक-एक है। ___ गोम्मटसार जीवकाण्ड में 23 प्रकार की वर्गणाओं का निरूपण हुआ है, यथाअणु वर्गणा, संख्याताणु वर्गणा, असंख्याताणु वर्गणा, अनन्ताणु वर्गणा, आहार वर्गणा, अग्राह्य वर्गणा, तेजस वर्गणा, भाषावर्गणा मनोवर्गणा, कार्मणवर्गणा आदि।" जीव एवं पुद्गल के सम्बन्ध को लेकर आठ प्रकार की वर्गणाएँ प्रसिद्ध हैं, यथा1. औदारिक वर्गणा-जिन वर्गणाओं से औदारिक शरीर का निर्माण होता है, उन्हें
औदारिक वर्गणा कहा गया है। 2. वैक्रिय वर्गणा - वैक्रिय शरीर के निर्माण में प्रयुक्त वर्गणा। नैरयिक एवं देवता
इसका प्रयोग करते हैं। कभी मनुष्य एवं तिथंच के द्वारा भी वैक्रिय शरीर का
निर्माण करते समय इसका उपयोग किया जाता है। 3. आहारक वर्गणा - प्रमत्त संयत मनुष्यों के द्वारा आहारक शरीर का निर्माण