________________
83
आगम- साहित्य में पुद्गल एवं परमाणु
साथ स्वीकृत हैं। ये चारों गुण सहभावी हैं। एक के होने पर चारों होते हैं। यह अवश्य है कि किसी गुण की तीव्रता एवं किसी गुण की मन्दता हो सकती है। आकाश को जैन दर्शन में पृथक् से द्रव्य माना गया है। पुद्गल परिणमन
पर्याय की अपेक्षा पुद्गल में निरन्तर परिवर्तन हो रहा है । वह परिवर्तन या परिणमन तीन प्रकार का प्रतिपादित है- 1. प्रयोग परिणमन 2. विनसा परिणमन 3. मिश्र परिणमना जीव द्वारा गृहीत पुद्गलों का परिणमन प्रयोग परिणमन है, यथा आहार आदि ग्रहण करने पर उसका मन, वचन, रक्त, मज्जा आदि में परिणमन । पुद्गल का जो परिणमन स्वतः होता है उसे विनसा परिणमन कहते हैं, जैसे परमाणुओं का स्वतः संघात होना, स्कन्धों का भेदन होना आदि । जिसमें विनसा एवं प्रयोग दोनों परिणमन हों उसे मिश्र परिणमन कहा गया है। उदाहरण के लिए आम, केला आदि को रसायनों से पकाना मिश्र परिणमन है। इसमें पुद्गल एवं जीव दोनों का योगदान होता है। आम, केला आदि पकने पर स्वभावतः पीले हो जाते हैं, मनुष्य उन्हें रसायनों के प्रयोग से शीघ्र पका देता है। परमाणु
पुद्गल के प्रमुखतः चार स्वरूप हैं - 1. स्कन्ध 2. देश 3. प्रदेश एवं 4. परमाणु। पुद्गल का स्वतन्त्र खण्ड जो परमाणु से बड़ा हो स्कन्ध कहलाता है। यह द्विप्रदेशिक से लेकर अनन्तप्रदेशिक तक हो सकता है। स्कन्ध का काल्पनिक अंश देश कहलाता है तथा पुद्गल का सूक्ष्मतम अविभाज्य खण्ड परमाणु माना गया है। स्कन्ध का परमाणु जितना अपृथक् अंश प्रदेश कहा गया है।
पुद्गल का सबसे छोटा अविभाज्य खण्ड परमाणु है, जिसका स्वतन्त्र अस्तित्व होता है। इसे अविभाज्य के साथ अदाह्य, अच्छेद्य और अग्राह्य स्वीकार किया गया है।
आधुनिक विज्ञान में स्वीकृत परमाणु का विभाजन इलेक्ट्रॉन, प्रोटोन एवं न्यूट्रॉन के रूप में मान्य है, किन्तु जैनदर्शन में मान्य परमाणु का विखण्डन अमान्य है। जैनदर्शन के अनुसार परमाणु को किसी साधन से जलाया नहीं जा सकता है, उसे किसी भी उपकरण से छेदा नहीं जा सकता और न ही उसे इन्द्रियादि से ग्रहण किया जा सकता है।