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सूत्रकृतांग में परमतानुसारी आत्म-स्वरूप की मीमांसा
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संकेत हमें सूत्रकृतांग सदृश महत्त्वपूर्ण आगम में प्राप्त होता है। __ सूत्रकृतांग में वैदिक परम्परा, चार्वाक, सांख्य, बौद्ध आदि दर्शनों से सम्बद्ध विभिन्न मान्यताओं का उपस्थापन एवं खण्डन उपलब्ध होता है। इसके प्रथम श्रुतस्कन्ध के प्रथम अध्ययन में पंचमहाभूतवाद, एकात्मवाद, तज्जीव-तच्छरीरवाद, आत्मषष्ठवाद, क्षणिकवाद, नियतिवाद, अज्ञानवाद, क्रियावाद, जगत्कर्तृत्ववाद, अवतारवाद आदि विभिन्न परमतों की चर्चा उपलब्ध होती है। प्रथम श्रुतस्कन्ध के ही समवसरण नामक बारहवें अध्ययन में अज्ञानवाद, विनयवाद, अक्रियावाद एवं क्रियावाद नामक मिथ्यामतों का निरूपण किया गया है। द्वितीय श्रुतस्कन्ध के प्रथम अध्ययन में पुनः तज्जीव-तच्छरीरवाद, पंचमहाभूतवाद, नियतिवाद आदि के साथ ईश्वरकारणवाद की भी विशद चर्चा हुई है। द्वितीय श्रुतस्कन्ध के आर्द्रकीय नामक छठे अध्ययन में गोशालक की मान्यता का आर्द्रक मुनि द्वारा प्रतिवाद किया गया है। बौद्धों, मांसभोजी ब्राह्मणों, सांख्य मतवादियों एवं हस्तितापसों की मान्यताओं का भी खण्डन किया गया है। इस प्रकार सूत्रकृतांग में हमें उस समय प्रचलित विभिन्न मतवादों का उल्लेख एवं खण्डन प्राप्त होता है।
सूत्रकृतांग पर आचार्य भद्रबाहु की नियुक्ति, जिनदासगणि कृत चूर्णि तथा आचार्य शीलांक की टीका प्राप्त होती है। आचार्य शीलांक ने इन मतों पर विशेष प्रकाश डाला है। आधुनिक काल में पूज्य घासीलाल जी महाराज के द्वारा सूत्रकृतांग पर समयार्थबोधिनी टीका का निर्माण किया गया है। इनसे पूर्व हर्षकुलगणि रचित दीपिका तथा साधुरङ्गगणिविरचित दीपिका टीकाएँ भी उपलब्ध होती हैं। इन सबमें परमतों की चर्चा की गई है। आत्मा के स्वरूप से सम्बद्ध कतिपय मतों की चर्चा इस आलेख में की जा रही है। (1)पंचमहाभूतों से चेतना की उत्पत्ति का मत एवं उसका खण्डन
भारतीय परम्परा में पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु एवं आकाश इन पांचों को महाभूत कहा गया है। इन महाभूतों की चर्चा सांख्य, वैशेषिक, न्याय, वेदान्त आदि विभिन्न दर्शनों में प्राप्त होती है। प्रायः ये दर्शन पंचमहाभूतों को स्वीकार करके भी आत्मा का स्वरूप एवं अस्तित्व इनसे पृथक् अंगीकार करते हैं। किन्तु चार्वाक एक ऐसा दर्शन है जो इन पांच महाभूतों से आत्मा का पृथक् अस्तित्व स्वीकार नहीं करता एवं इन पांच