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जैन धर्म-दर्शन : एक अनुशीलन
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है, किन्तु केवल एक अंश अधिक होने पर बन्ध नहीं होता है । दिगम्बर ग्रन्थों की व्याख्याओं के अनुसार एक अवयव से दूसरे अवयवों के मात्र दो अधिक होने पर बन्ध माना गया है। एक अंश की तरह, तीन, चार यावत् संख्यात, असंख्यात तथा अनन्त होने पर बन्ध नहीं माना जाता । श्वेताम्बर मान्यता के अनुसार असदृश अवयवों में मात्र जघन्य से जघन्य गुण का बंध नहीं होता, शेष स्थितियों में बंध होता है। जबकि दिगम्बर मान्यतानुसार जघन्य से भिन्न गुणांश वाले अवयव का दो अधिक गुणांश वाले अवयवों से ही बन्ध होता हैं, अन्य से नहीं। "
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सूक्ष्मता एवं स्थूलता पुद्गल में ही उपलब्ध होती है। इस आधार पर पुद्गल के छह प्रकार निरूपित हैं 12
1. बादर - बादर (अतिस्थूल - स्थूल ) - महत्काय ठोस पुद्गलों को स्थूल-स्थूल अथवा बादर- बादर कहा जाता है। पर्वत, चट्टान, लकड़ी आदि इसके उदाहरण हैं।
2. बादर (स्थूल ) - यह द्रव अथवा गैस रूप में होता है, यथा- जल, तेल, दूध, घी, वायु आदि। ये छिन्न-भिन्न होने पर पुनः मिल जाते हैं।
3. बादर - सूक्ष्म - जिसका छेदन - भेदन न किया जा सके, न ही जिसे एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजा जा सके, किन्तु जो चक्षुगोचर हो सके उसे बादरसूक्ष्म कहते हैं, यथा- प्रकाश, छाया, आतप आदि।
4. सूक्ष्म - बादर - जो अदृश्य होते हुए भी इन्द्रिय- ग्राह्य हो, यथा - सुगन्ध, शब्द आदि । ध्वनि एवं मोबाइल, रेडियो, टी.वी. आदि की तरंगें भी इसी वर्ग में समाविष्ट होती हैं।
5. सूक्ष्म जीव जिन पुद्गलों को ग्रहणकर भाषा, मन, कर्म आदि का निर्माण करता है, उन्हें सूक्ष्म पुद्गल कहते हैं।
6. सूक्ष्म - सूक्ष्म - अनन्त परमाणुओं से न्यून द्वयणुक आदि से बना वह स्कन्ध जिसका उपयोग जीव भी नहीं कर पाता है, उसे सूक्ष्मसूक्ष्म कहा गया है।
संस्थान का तात्पर्य आकार है। पुद्गल किसी न किसी आकार को ग्रहण करता है। संस्थान के व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्र में परिमण्डल, वृत्त, त्रिकोण, चतुष्कोण,