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जैन धर्म-दर्शन : एक अनुशीलन
मिलना एवं गलन का अर्थ है बिछुड़ना । पुद्गल में संयोग एवं वियोग की प्रवृत्ति होती है, संघात एवं भेद की प्रवृत्ति होती है। लोक में हम श्रोत्र, चक्षु, घ्राण, रसना एवं स्पर्शन इन्द्रियों से जो कुछ जानते हैं वह सब पुद्गल ही है। इस तरह जो इन्द्रिय ग्राह्य है, वह सब पुद्गल है, किन्तु कुछ सूक्ष्म पुद्गल इस प्रकार के भी होते हैं, जिन्हें हम इन्द्रियों से ग्रहण नहीं कर पाते हैं।
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अजीव द्रव्य 'पुद्गल' के प्रमुखतः दो प्रकार हैं- 1. सूक्ष्म पुद्गल एवं 2. बादर पुद्गल । जो इन्द्रियों द्वारा ग्राह्य पुद्गल है वह बादर पुद्गल है तथा जो पुद्गल इन्द्रिय ग्राह्य नहीं है वह सूक्ष्म पुद्गल है। इन दोनों प्रकार के पुद्गलों में पुद्गल का लक्षण पाया जाता है। पुद्गल का लक्षण है- स्पर्शरसगन्धवर्णवन्तः पुद्गलाः। (तत्त्वार्थसूत्र 5:30) जो स्पर्श, रस, गन्ध एवं वर्ण / रूप गुण वाले द्रव्य हैं वे पुद्गल हैं। पुद्गल चाहे बादर / स्थूल 'हों अथवा सूक्ष्म, सबमें स्पर्श, रस, गन्ध एवं वर्ण का अस्तित्व न्यूनाधिक रूप में रहता है। पुद्गल का यह लक्षण सभी पुद्गलों में व्याप्त है। परमाणु एवं सूक्ष्म पुद्गलों में यह लक्षण अनुत्कट रूप में रहता है, अतः हमें ज्ञात नहीं होता है। यदि सूक्ष्म पुद्गलों में स्पर्श आदि गुण न हों तो वे स्थूल पुद्गलों में भी नहीं आ सकते। व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र में पुद्गल में वर्ण, गन्ध, रस एवं स्पर्श के साथ संस्थान परिणाम का भी कथन हुआ है, क्योंकि पुद्गल इनके साथ परिणमन करता है। संस्थान का तात्पर्य है - आकार | पुद्गल का कोई न कोई आकार भी होता है। पुद्गल को वर्णादि के आधार पर जाना जाता है। इसलिए वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श एवं संस्थान को पुद्गल - करण कहा गया है। " आलापपद्धति नामक ग्रन्थ में स्पर्शादि चार गुणों के साथ मूर्तत्व एवं अचेतनत्व को भी पुद्गल का विशेष गुण स्वीकार किया गया है।' अतः यह कहा जा सकता है कि स्पर्श, रस, गन्ध एवं रूप
से युक्त वह द्रव्य जो अचेतन हो एवं मूर्त हो वह पुद्गल है । किन्तु मूर्तत्व गुण रूपित्व या संस्थान/ आकार के रूप में पहले से स्वीकृत गुण है तथा अचेतनत्व सभी अजीव द्रव्यों में पाया जाता है। इस तरह स्पर्श, गन्ध एवं वर्ण ही अजीव पुद्गल के प्रमुख गुण एवं लक्षण कहे जा सकते हैं।
शब्द, बन्धादि भी पुद्गल के पर्याय
उत्तराध्ययन सूत्र में शब्द, अन्धकार, उद्योत ( चन्द्रमा का प्रकाश), प्रभा (सूर्य