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जैन धर्म-दर्शन : एक अनुशीलन
आत्मा का अस्तित्व नहीं है तो बन्धन और मोक्ष किसका होगा? कर्तृत्व और भोक्तृत्व किसमें घटित होगा? पूर्णतः चेतना या आत्मा का अस्तित्व न मानने पर पुनर्जन्म की व्यवस्था भी नहीं बन सकेगी। जबकि बौद्ध परम्परा में बुद्ध के अनेक भवों का वर्णन जातक कथाओं में प्राप्त होता है। इसलिए ऐसा कहना उचित नहीं होगा कि बौद्ध दर्शन में आत्मा या चेतना को बिल्कुल स्वीकार नहीं किया गया है। वे विज्ञानस्कन्ध को आत्मा के रूप में स्वीकार करते हैं।
पूज्य घासीलाल जी महाराज ने बौद्धों के पक्ष को प्रस्तुत करते हुए कहा है"ननु को ब्रूते आत्मा नास्ति, अस्त्येव तु विज्ञानस्कन्धरूप आत्मा- यद्यपि आत्मापि विज्ञानरूप एव, तथापि तस्मिन्नेव विज्ञानात्मनि ज्ञानसुखादयो विद्यन्ते। ज्ञानसुखादयश्च तादृशविज्ञानात्मन एवाकार-विशेषाः ते तदात्मनि समवेताः, ततः सुखदुःखादिफलानामुपभोगो जन्ममरणादिका सर्वाऽपि व्यवस्था च समाहिता भवति।' अर्थात् बौद्ध मत में आत्मा विज्ञानरूप है। उस विज्ञान आत्मा में ज्ञान, सुख आदि रहते हैं। उस विज्ञान आत्मा में समवेत सुख दुःखादि फलों का भोग तथा जन्म-मरण आदि की व्यवस्था सम्भव होती है। किन्तु जैन दार्शनिकों ने क्षणिकवाद के आधार पर इसका खण्डन किया है। पूज्य घासीलाल जी ने खण्डन में कहा है कि जिस प्रकार घट आदि पदार्थ क्षणिक हैं उसी प्रकार बौद्धमत में आत्मा भी क्षणिक ही है। क्षणिक होने से उत्पन्न होकर वह नष्ट हो जाती है। उस विनष्ट आत्मा के द्वारा कालान्तरभावी स्वर्गादि फलों का भोग नहीं किया जा सकता। क्योंकि अन्य क्षण में की गई क्रिया का अन्य क्षण में मिलने वाले फल के साथ अनित्य पक्ष में सम्बन्ध नहीं हो सकता। दूसरी बात यह है कि क्षणिकवाद में कृतकर्म के फल के नाश एवं अकृत कर्म के फल की प्राप्ति का प्रसंग उपस्थित होता है।* चातुर्धातुकवाद एवं नियतिवाद में आत्म-चर्चा ___ बौद्ध दर्शन की एक मान्यता के अनुसार पृथ्वी, जल, अग्नि एवं वायु इन चार धातुओं से यह शरीर निर्मित होता है, जिसे जीव कहा जाता है।" बौद्धदर्शन में जीव को पुद्गल शब्द से भी अभिहित किया गया है। चार्वाक दर्शन में जहाँ इन चारों को भूत कहा गया है, वहाँ बौद्ध दर्शन में इन्हें धारण-पोषण के कारण धातु कहा गया है। बौद्धों की इस अवधारणा का खण्डन नियुक्ति गाथा को वेएइ' के आधार पर