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जैन धर्म-दर्शन : एक अनुशीलन
16. यदि पुनरेक एवात्मा व्यापी स्यात्तदा घटादिष्वपि चैतन्योपलब्धिः स्यात्, न चैवं, तस्मान्नेक . आत्मा भूतानां चान्याऽन्यगुणत्वं न स्याद्, एकस्मादात्मनोऽभिन्नत्वात्।
- श्री सूत्रकृतांगसूत्र, लाखाबावल, शीलांङ्कटीका, पत्रांक 60 17. श्री सूत्रकृतांगसूत्र, लाखाबावल, साधुरङ्गदीपिका व्याख्या, पत्राङ्क 61 18. वही, पत्राङ्क 61 19. पत्तेअंकसिणे आया, जे बाला जे अ पंडिया। ____ संति पिच्चा न ते संति, नत्थि सत्तोववाइया।।- सूत्रकृतांग, 1.1.1.11 20. वृहदारण्यकोपनिषद्, 2.4.12 21. सूत्रकृतांगसूत्र, 1.1.1.12 22. सूत्रकृतांग सूत्र,2.1, सूत्र 648 23. वही, सूत्र 649 24. आचारांगसूत्र में कहा गया है कि आत्मा न दीर्घ है न इस्व, न वृत्त है न त्रिकोण, न
चतुष्कोण, न परिमंडल, न कृष्ण, न नील, न लोहित, न पीला, न शुक्ल, न सुरभिगन्ध, न दुरभिगन्ध, न तिक्त है न कटु, न कसैला, न खट्टा, न मधुर, न ककर्श है न मृदु, न गुरु है न लघु, न शीत है न उष्ण, न स्निग्ध है न रुक्ष, न वह काया है। वह जन्मधर्मा नहीं है, वह संगरहित है, वह न स्त्री है, न पुरुष और न नपुंसका- आचारांगसूत्र, आगम प्रकाशन
समिति, ब्यावर, 1.5.6, सूत्र 176 25. सूत्रकृताङ्ग, 2.1, सूत्र 650 26. द्रष्टव्य- राजप्रश्नीयसूत्र, सूत्र 242 से 259 27. सूत्रकृतांग टीका, 1.1.1.12 में उद्धृत वाक्य 28. तमाओ ते तमं जंति, मंदा आरम्भनिस्सिया। - सूत्रकृतांग 1.1.1.14 29. द्रष्टव्य, राजप्रश्नीय सूत्र, सूत्र 243 से 259 30. देहमात्रस्य ह्यात्मत्वे देहनाशाद्विनाशतः। ___ महाधियां च शास्त्राणां प्रवृत्तिर्नैव संभवेत्।।
-श्री सूत्रकृतांगसूत्र, पूज्य घासीलाल कृत टीका, भाग-1, पृ. 141 31. षड्दर्शनसमुच्चय, टीका में उद्धृत, पृ.152 32. सूत्रकृतांग, 1.1.1.13 33. को वेयई अकयं? कयनासो पंचहा गई नत्थि।
देवमणुस्सगयागइं जाईसरणाइयाणं च।।-नियुक्तिसंग्रह, सूत्रकृतांगनियुक्ति, गाथा 341 34. द्रष्टव्य, सूत्रकृतांगसूत्र, 1.1.1.14 पर शीलांकाचार्य कृत टीका, प्रथम भाग, पत्रांक 71 35. द्रष्टव्य, वही, पत्रांक 71