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सूत्रकृतांग में परमतानुसारी आत्म-स्वरूप की मीमांसा
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कराता है। संसार में अनेक मत-मतान्तरों को देखकर या सुनकर मंदबुद्धि एवं कोमल हृदय वाले लोग भटक जाया करते हैं। अतः उनको सन्मार्ग पर लाने के लिए अन्य मतों के दोषों या कमियों का ज्ञान कराना भी शास्त्रकारों का उद्देश्य होता है। उस उद्देश्य में सूत्रकृतांग एवं उसके व्याख्या-ग्रन्थों की भूमिका सराहनीय है। सन्दर्भ:1. सूत्रकृतांग, 1.1.1., गाथा 7-8 2. सर्वदर्शनसंग्रह, चार्वाकदर्शन, श्लोक 6 3. अयं अत्ता रूपी चातुर्महाभूतिको मातापेत्तिकसम्भवो कायस्स भेदा उच्छिज्जत्ति, विनस्सति,
न होइ परं मरणा....... इत्थेके सतो सत्तस्स उच्छेदं विनासं विभवं पज्ञापेंति।दीघनिकाय, ब्रह्मजाल सुत्त, पृ. 30, प्रकाशक-भारतीय बौद्ध शिक्षा परिषद्, बुद्ध विहार,
लखनऊ। 4. सूत्रकृतांग 2.1, सूत्र 655 5. पंचण्हं संजोए अण्णगुणाणं च चेयणाइगुणो।
पंचिंदियठाणाणं ण अण्णमुणियं मुणइ अण्णो।।-नियुक्ति-संग्रह, सूत्रकृतांग नियुक्ति,
गाथा 33 6. यदप्यत्रपूर्वोक्तं यथा- मद्याङ्गेष्वविद्यमानाऽपि प्रत्येकं मदशक्तिः समुदाये प्रादुर्भवतीति,
तदप्ययुक्तं, यतस्तत्र किण्वादिषु या च यावती च शक्तिरुपलभ्यते, तथाहि किण्वे बुभुक्षापनयनसामर्थ्य भ्रमिजननसामर्थ्य च उदकस्य तृडपनयन- सामर्थ्यमित्यादिनेति, भूतानां च प्रत्येकं चैतन्यानम्युपगमे दृष्टान्तदाान्ति- कयोरसाम्यम्।- श्री सूत्रकृतांगसूत्र
1.1.1, गाथा 7-8 पर शीलांककृतटीका, पत्रांक 53 7. किं च भूतचैतन्याभ्युगमे मरणाभावो, मृतकायेऽपि पृथ्व्यादीनां भूतानां सद्भावात्। -वही,
पत्रांक 53 8. लेप्यप्रतिमायां समस्तभूतसद्भावेऽपि जडत्वमेवोपलभ्यते।- वही, पत्रांक 53 9. अस्त्यात्मा, असाधारणतद्गुणोपलब्धेः............। -वही, पत्रांक 54 10. उत्तराध्ययनसूत्र 20.37 11. सूत्रकृताङ्ग 1.1.1.9 12. ब्रह्मबिन्दूपनिषद्, 11 13. कठोपनिषद्, 2.2.10 14. श्वेताश्वरोपनिषद्, 6.11 15. एवमेगे त्ति जंपंति, मंदा आरंभनिस्सिया।
एगे किच्या सयं पावं, तिव्वं दुक्खं नियच्छइ।।- सूत्रकृतांग, 1.1.1.10