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कभी कामना और वासना के लिए, तो कभी दूसरों की समीक्षा और सुधार के लिए दिन-रात प्रयासरत रहता है। वह धन–सम्पत्ति और सुख-सुविधाओं की प्राप्ति के लिए सतत चिन्ताशील रहता है, किन्तु अथक परिश्रम करने के बाद भी अभीष्ट फल की प्राप्ति नहीं कर पाता, परिणामतः उसका मानस तनाव और निराशा में डूब जाता है और इस तरह जीवन यूँ ही समाप्त हो जाता है। ऐसे निरर्थक जीवन को सार्थक बनाने के लिए आवश्यक है जीवन को सम्यक् दिशा में नियोजित करना, इसे ही जीवन- प्रबन्धन कहते हैं । यही इस ग्रन्थ की विषय-वस्तु है ।
(2) शोध - ग्रन्थ का प्रयोजन
जहाँ अप्रबन्धित-जीवन तनाव, क्लेश और दुःख का जनक है, वहीं प्रबन्धित - जीवन दुःख और तनाव से मुक्त दशा की प्राप्ति कराने वाला है। अतः जब मानव अन्तर्मुखी होकर सकारात्मक चिन्तन करता है, तब जीवन - प्रबन्धन उसका ध्येय बन जाता है । प्रकृत ग्रन्थ का प्रयोजन भी जीवन - प्रबन्धन का ज्ञान कराना है, जिसके प्रयोग से जीवन आनन्दमय बन सके ।
( 3 ) शोध - ग्रन्थ के अध्ययन का अधिकारी (सुपात्र)
इस सृष्टि की सर्वोत्तम कृति है मनुष्य । पाश्चात्य मानवतावादी चिन्तकों ने भी पशु-पक्षी - कीड़े-मकोड़े आदि अन्य प्राणियों की तुलना में मनुष्य में निम्नलिखित तीन विशिष्ट योग्यताएँ मानी हैं
1) विवेक (Discretion)
2) सजगता (Awareness)
3) संयम (Self-control or Temperence)
उपर्युक्त तीनों शक्तियों के कारण हम कह सकते हैं कि मनुष्य में ही वे क्षमताएँ हैं, जो जीवन के प्रबन्धन के लिए आवश्यक हैं। अतः प्रकृत ग्रन्थ का सुयोग्य अधिकारी 'मनुष्य' ही है। सामान्य तौर पर सभी मनुष्य इस ग्रन्थ के अध्ययन के अधिकारी हैं, लेकिन विशेष तौर पर अपने जीवन का प्रबन्धन करने के इच्छुक और रुचिवन्त मनुष्य ही इस ग्रन्थ का अध्ययन करने के लिए समर्थ अधिकारी हैं ।
( 4 ) शोध-ग्रन्थ का विषय के साथ सम्बन्ध
प्रकृत शोध-ग्रन्थ और विषय का परस्पर प्रतिपादक - प्रतिपाद्य सम्बन्ध I
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प्रतिपादक
प्रतिपाद्य
सार रूप में हमारी अपेक्षा यही है कि प्रस्तुत शोध-ग्रन्थ के माध्यम से रुचिवन्त मनुष्य जीवन–प्रबन्धन नामक विषय का यथार्थ ज्ञान प्राप्त कर जीवन को सुव्यवस्थित करते हुए सुख, शान्ति तथा आनन्दमय जीवन जीने के स्वप्न को साकार कर सकें । फिर भी, यह सुनिश्चित है कि ग्रन्थ सहयोगी अर्थात् मार्गदर्शक ही है। वस्तुतः, जीवन - प्रबन्धन हेतु रुचिवन्त मनुष्य का निज पुरूषार्थ ही जीवन- प्रबन्धन के तत्त्व
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विषय की व्याख्या या प्रतिपादन करने वाला । व्याख्यायित अथवा प्रतिपादित किया जाने वाला ।
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