Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
View full book text
________________
६० : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : प्रथम अध्याय
說蒂蒂蒂器获流器路端落落落落落落落器
जप तप तीरथ जज्ञ व्रतादिक, आगम अर्थ उचरना रे । विषय कषाय कीच नहिं बोयो, यों ही पचि पचि मरना रे ।
अन्तर उज्ज्वल करना रे भाई ! बाहिर भेष क्रिया उर शुचि सों, कीये पार उतरना रे। नाहीं है सब लोक रंजना, ऐसे वेदन वरना रे।
अन्तर उज्ज्वल करना रे भाई ! कामादिक मल सौं मन मैला, भजन किये क्या तिरना रे ! 'भूधर' नील वसन पर कैसे, केसर रंग उछरना रे ?
अन्तर उज्ज्वल करना रे भाई।
चेतन, उल्टी चाल चले । जड़ संगति सौं जड़ता व्यापी, निज गुन सकल टले ।
चेतन, उल्टी चाल चले । हितसौं विरचि ठगनिसौं राचे, मोह पिशाच छले । हँसि-हँसि फन्द सँवारि प्रापही, मेलत आप गले ।
चेतन, उल्टी चाल चले । आये निकसि निगोद सिन्धु तें, फिर तिह पंथ टले । कैसे परगट होय भाग जो दबी पहार तले ।
चेतन, उल्टी चाल चले । भूले भव-भ्रम वीचि 'बनारसि' तुम सुरज्ञान भले । धर शुभ ध्यान ज्ञान-नौका चढ़ि, बैठे ते निकले ।
चेतन, उल्टी चाल चले ।
राम कहो, रहमान कहो कोऊ, कान कहो महादेव री। पारसनाथ कहो, कोई ब्रह्मा, सकल ब्रह्म स्वयमेव री। भाजन भेद कहावत नाना, एक मृत्तिका रूप री। तैसे खण्ड कल्पनारोपित, आप अखण्ड सरूप री।
राम कहो, रहमान कहो कोऊ...। निज पद रमे राम सो कहिए, रहिम करे रहिमान री। कर्पे करम कान सो कहिए, महादेव निर्वाण री।
राम कहो, रहिमान कहो कोऊ....। परसे रूप पारस सो कहिए, ब्रह्म चीन्हें सो ब्रह्म री। अह विधि साधो श्राप 'आनन्दधन', चेतन में निष्कर्म री।
राम कहो, रहमान कहो कोऊ...।
Jain Education Intemational
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org