Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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मुनि श्री मिश्रीमल 'मधुकर' जीवन-वृत्त : ५६
अब हम अमर भये, न मरेंगे 11 जा- कारन मिथ्यात दियौ तज, क्यों करि देह धरेंगे ? अब हम श्रमर भये, न मरेंगे ॥ उपजै-मरे काल तें पानी, तातै काल हरेंगे ! राग-दोष जग बन्ध करत हैं, उनको नाश करेंगे।
अब हम अमर भये, न मरेंगे ॥ देह विनाशी में अविनाशी, मेद करेंगे। भेद-ज्ञान नाशी जासी, हम विश्वासी, चोखे हों निखरंगे।
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अब हम अमर भये, न मरेंगे ॥ बिसरेंगे 1 सुमर रौं गे ।
अमर भये, न मरेंगे ॥
मरे अनन्तवार, बिन समझें, अब सब दुख 'द्यानत' निपट निकट दो अक्षर, बिन सुम अब हम
अपनी सुधि भूल श्राप, ज्यों शुक नभ चाल बिसरि,
श्राप दुख उपायौ 1 नलिनी लटकायौ ।
अपनी सुधि भूल आप, आप दुख उपायौ ॥ चेतन अविरुद्व शुद्ध, दरशबोधमय विशुद्ध तजि जड़ रस फरस रूप, पुद्गल अपनायौ ।
अपनी सुधि भूल आप, आप दुख उपायौ 11
इन्द्रिय सुख दुख में नित्त, पाग राग-रुख में चित्त । दायक भव- विपत्तिवृन्द, बंध को पायौ ।
चाह- दाह दाहै, समता-सुधा न गाहै,
अपनी सुधि भूल आप, आप दुख उपायौ 11 त्यागौ न ताह चाहै। जिन-निकट जो बतायौ । अपनी सुधि भूल आप, आप दुख उपायौ 11
मानुष भव सुकुल पाय, जिनवर शासन लहाय । 'दौल' निज स्वभाव भज, अनादि जो न ध्यावौ ।
अपनी सुधि भूल आप, आप दुख उपायौ । ज्यों शुक नभ-चाल बिसरि, नलिनी लटकायौ ॥
अन्तर उज्ज्वल करना रे भाई !
कपट कृपान तजै नहिं तबलौं, करनी काज न सरना रे ।
अन्तर उज्ज्वल करना रे भाई !
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