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2000
अमूल्य
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अमृतस्त्रों " पाय अमूलक देह यहै नर "--सुन्दर० । अमृतध्वनि-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) अमूल्य–वि. (सं० ) जिसका मूल्य न २४ मात्राओं का एक यौगिक छंद इपके निर्धारित किया जा सके, अनमोल । आदि में एक दोहा रहता है उसी के अंतिम
अमोल । (दे० ) बहुमूल्य, वेश-क्रीमती ।। चरण को लेकर भागे चार चरण रोला के अमृत-संज्ञा, पु. ( सं० ) वह पदार्थ दिये जाते हैं. इनमें निरर्थक वण वृति ही जिसके पान करने से जीव अमर हो जाता प्रायः प्रधान रहती है, प्रायः संयुक्त वर्णों है, सुधा, पीयूष, जल, घी, यज्ञ के पीछे के साथ चार चरणों में से प्रत्येक में ३ तोन बची हुई सामग्री, अन्न, मुक्ति, दूध, वार यमक रहती है।
औषधि, विष, बच्छनाग, पारा, धन, सोना, अमृतफल - संज्ञा, पु० यौ० ( सं० ) पटोल, मीठी वस्तु ।
परवर। वि० (सं० अ-+मृत ) जो मरा न हो, अमृतफला-संज्ञा, स्त्री० यो० (सं.) मृत्यु रहित ।
दाख, अंगूर, श्रामलकी। संज्ञा, पु० धन्वन्तरि, बाराहीकन्द, बनमूंग, अमृतबल्ला ---- संज्ञा, स्त्री० यो० (सं० ) देवता।
गुरिच की लता। अमृतकर-संज्ञा, पु० (सं० ) चन्द्रमा, (दे०) अमरवेल. अमरबोर । निशाकर ।
अमृतवान-- संज्ञा, पु. ( सं० अमृत - धी। अमृतकंड-संज्ञा, पु० यौ० ( सं० ) |
वान) लाह के रोग़न या पालिश वाला मिली अमृतपात्र ।
का बर्तन, जिसमें अचार यादि रखते हैं। अमृतकंडली-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं० )
अमृर्ताबन्द-संज्ञा, पु० यो० (सं०) एक प्रकार का छंद, एक प्रकार का बाजा।
एक उपनिषद का नाम । अमृतगति-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं० ) एक
अमृतमूरि-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) प्रकार का छंद ।
अमियमूरि, अमरमूरि, संजीवनी बूटी। अमृतजटा-संज्ञा, स्त्री० यौ० ( सं० )
अमृतयांग-संज्ञा, पु. यौ० ( सं० ) फलित जटामासी। अमृततरंगिणी-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं० ) ।
ज्योतिष का एक शुभ फलप्रद योग । ज्योत्स्ना, प्रकाशमयी या चंद्रिकायुक्त रात्रि ।
अमृतरस--- संज्ञा, पु० यौ० ( सं० ) सुधा,
पीयूष । अमृतत्व--संज्ञा, भा० पु. ( स० ) मरण का अभाव, न मरना, अमरता, मोक्ष,
अमृतलता-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं०) मुक्ति, अमरत्व ।
अमरबेल, अंगूर या गुरिच की लता। अमृतदान--संज्ञा, पु. ( सं० अमृत+
अमृतसंजावना--वि० स्त्री. यौ० ( सं०) आधान ) भोजन की चीजें रखने का ढकने
मृतसंजीवनो, एक प्रकार की रसादिक दार बर्तन ।
औषधि। अमृनदीधिति- संज्ञा, पु० यौ. ( सं० ) । अमृतसार-संज्ञा, पु० यौ० ( सं० ) अंगूर,
चंद्रमा,शशांक, सुधाकर, सुधांशु, निशाकर। छो, मक्खन, नवनीत, नेनू । अमृतधारा--संज्ञा, स्त्री. (सं० यौ०) अमृतसंभवा--- संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं.) एक प्रकार का वर्णिक वृत्त, इसके प्रथम गिलोय, गुडीची। द्वितीय, तृतीय, और चतुर्थ चरण में क्रमशः अमृतस्रवा-संज्ञा, स्त्री० यौ० (सं० ) २०, १२, १६ और ८ वर्ण होते हैं। कदलीवृक्ष, एक प्रकार की लता।
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