________________
किरण १]
जेसलमेर के भंडार में प्राप्त कुछ नवीन ताड़पत्रीय प्रतियाँ
४५
उपाश्रयमें भी थोड़ा संग्रह है पर कई अनिवार्य कारण वश ११८ आश्विन वदि । अणहिल पत्तनमें जयसिंह देवके प्रयत्न करने पर भी उसे न देख सके। जिन नये चार राज्य में लिखित । भंडारोंको हमने देखा उनमें से खरतर पंचायती भंडारमें ५४ भनेमिनाय चरित्र-का-हेमचंद्रसूरि पत्र १६१। और खरतराचार्य शाखा भंडारमें ६ कुल २० ताडपत्रीय रवीरचरित्र-कर्ता हेमचंद्रसूरि, पत्र १७२ । प्रतिये नवीन मिली उनका परिचय इस लंख में कराया . अजीतकल्पर्णि:-कर्ता-चन्द्रसूरि जा रहा है।
श्रावकप्रतिक्रमणवृत्ति कर्ता-तिलकाचार्य पंचायतीभंडार'(बका उपाश्रय)की ताडपत्रीय प्रत्रिय-- " स्याद्वादरस्नाकर-कर्ता वादिदेवमूरि, पत्र २७३।
जीतकल्पचूर्णि-पत्र १०६ अंतमें प्रायश्चित सिद्धपेन १२ स्कंदपुराण-पत्र १८५। कृत समाचारी पत्रांक ११७ से जीतकरूप बृहरचर्णि-धनेश्वर
१३ श्रावकप्रज्ञप्ति, सूक्ष्मार्थ विचारसार जिनवल्लभ सरि शिष्य श्रीचंद्रसूरि कृत पत्रांक १८७ में पूर्ण हुई है।
सूरिकृत) बड़ी संग्रहणी, भवभावनाप्रकरण (हेमचन्द्र इस चूर्णिका श्रादि भ ग त्रुटित प्रतीत होती है।
सूग्कृित), सत्तरी, कुन पत्र १६२, सं० १२०६ कार्तिक २ योगशास्त्रमवृत्ति-कर्ता हेमचंद्रसूरि, पत्र ३१८ शु १३ रवि०लि. इसका पुष्पिका लेख यह: - सुतेन साधु गुण चद्र मा.
१४ पाक्षिक सत्र वृत्ति-यशोदेवसू रिकृत, सं० ११८० भुवनचंद्र सकल दिग्वलय विख्याता वा. वातकीर्ति कोमुदी
पाटण में रचित प० २४.। विनर्जितामचन्द्र साधु भी हेमचंद्र महिपाल मा रत्नभ्राता
खरतराचार्यशाखा उपाश्रयकी ताडपत्रीय प्रतियसकल गु........."न सा. महण श्रावण श्री ......."
तिलकमअरी-धनपालकृत, पत्र १६४, सं. नप्रबोधसूरिशिष्यावतंशाना श्रीजिनचंद्रसूरिसुगु णां व्याख्यानाय प्रदत्तं ।
१२५५ श्रीमाल गोत्रीय लक्ष्मण के वंशज यशोधवन की पुत्री
कक्मिणीने सुमलिसिंह मुरिको समर्पित की. इस प्राशयकी ३ अंग विजा--पत्र २६६
है श्लोकोंकी प्रशस्ति है। दपरी प्रशस्तिमें लिखा है कि ४ अरविजय-महाकाव्य सर्ग २, स्नाकर कवि
सं० १४३१ पत्तनमें श्री जिमोदयसूरि राज्ये ज्ञानकवश कृत, पत्र १०७, सं०१२२८ वैशाख सुदि अणहिल पत्न में विविध लिपिज्ञ पं० सूपट लिखित ।
मुनि पश्चात इह मुनिमेरूनंदनः । व वसुदेव हिण्डी प्रथम खण्ड, पत्र १५८ ।
२ सर्वज्ञारीक्षा-पत्र ४, गा० ४।।
ब दुषम गंडिया गा० १०० ५ नन्दीर्णि:-शक संवत् ५६८ में रचित, पत्र
म वोच्छेय गंडिका गा १७५ १८५ से २२३ पूर्ण।
दमामुद्रिक श्लोक १६ ६ अ दशबैकालि कर्णि-पत्र १८४ ।
ई पार्श्वनाथाष्टक फ बृहत शान्ति व अनुयोगद्वारणिः
ज कालचक्र गा० २४ आदि स ताडपत्रीय पुस्तक काष्ट फलकोपर बरही
३ तिलक मंजरी पत्र अपूर्ण सुन्दर और चमकीले रंगके चित्र चित्रित हैं जो देखने में
४ छ अजितशान्तिवृत्ति-मूल-जिन वल्लभ टीकाप्राचीन होते हुए भी बिलकुल नएमे प्रतीत होते हैं।
धर्मतिलक, सं० १३२२ फा. सु. ६ लिखित पत्र । पंचकल्पचूर्णि-पत्र २०१, ग्रंधान ० ३१२५, देवा
व महादेव लक्षण-हेमचंद्र मूरि चार्य कृत ।
स प्रतिष्ठाविवाद मोहोन्मूलन, पत्र ३५ । मनिसवतचरित्र-पत्र ३७४, श्रीचंद्रमूरि कृत, सं.
जिनजामनिया श्रीलादेशान्तो। १इसकी सूची यतिचर्य श्रीलचमीचंद्रजी महाराजने बनाई। ख्याते मुटुकेश्वरे मुरुवरे कस्यापि सूरे पुरः॥