Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
सुदर्शिनी टीका अ० १ सू० १९ कान् जीवान् किदुग्धातकान
७५
दीनान् 'सत्ते' सत्त्वान् = पृथिव्यादीन् 'उवहणंति' उपघ्नन्ति = मारयन्ति, कस्मादित्याह - 'कोहा' क्रोधात्, 'माणा' मानात् 'माया' मायायाः = कपटात् 'लोभा ' लोभात् 'हासा' हास्यात् 'रह' रते = रागात् 'अरइ' अरते:= द्वेषात् 'सोय' शोकात् 'उपघ्नन्ति' इति सम्बन्धः । किमर्थम् ? इत्याह- 'वेयत्थजीयधम्मत्थकामहेऊ' वेदार्थजीवधर्मार्थकामहेतोः, अत्र हेतुशब्दस्य प्रत्येकमभिसम्बन्धः । ' वेयत्थ ' वेदोक्तानुष्ठानं, 'जीयः ' जीवः जीवनं, ' धम्म ' धर्मः कुलजात्यादिलक्षणः, ‘अत्थ' अर्थः=धनं, 'काम' कामाः = शब्दादयः इत्येतेषां हेतोः = कारणात् 'सवसा' स्वचशाः =स्वाधीनाः सन्तः, ' अवसा अवशाः = पराधीनाः - पर निर्देशवर्तिनः, 'अट्टाए' अर्थाय = प्रयोजनाय 'अणट्टाए' अनर्थाय अप्रयोजनाय - निरर्थकमित्यर्थः
"
1
रूप चक्षुओं पर अज्ञान का पर्दा पड़ा हुआ है । और (दारुणमई) जिनके परिणाम अत्यंत क्रूर बन चुके हैं ऐसे प्राणी ( सत्तपरिवज्जिए ) बलहीन दीन ( सत्ते) पृथिव्यादिक जीवों की ( उवहणंति ) विराधना करते हैं - वह विराधना किस कारण से करते है सो कहते है (कोहा, माणा, माया, लोभा, हासा, रति, अरति, सोय ) क्रोध, मान, माया, लोभ, हास्य, रति, अरति, शोक से करते हैं । अर्थात् इन परिणामो से युक्त होकर हिंसक पृथिवी आदिक जीवों की हिंसा करते हैं । किसलिये करते है ? (वेयत्थ जीयधम्मत्थकामहेऊ) वेदार्थ, जीवन, धर्मा
काम के लिये करते हैं, यहां हेतु शब्द का संबंध प्रत्येक के साथ में कर लेना चाहिये - वेदार्थ वेदोक्त अनुष्ठान के लिये, जीवन के लिये, धर्म के लिये, अर्थ-धन- के लिये, काम-शब्दादिक पांचों इन्द्रियों के विषयों के लिये, इन्हीं सब कारण कलापों को लेकर (सवसो) स्वाधीन अथवा (अवसा) पराधीन होकर (अट्टाए) प्रयोजन के लिये अथवा (अणट्ठाए य)
"
पर अज्ञानना पट्ट पडेल छे, भने “ दारुणमई ” भेभनी वृत्तियो अत्यंत डूर जनी गई छे सेवा वे " सत्तपरिवज्जिए" माहीन, हीन "सत्ते" पृथ्वी अय माहि कवोनी “ उवहणंति " हत्या उरे छे. ते हिंसा यां यांअर उरे छे ते सूत्रअछे - " कोहा, माणा, माया, लोभा, हासा, रति, अरति, सोय " ोध, भान, भाया, बोल, हास्य, रति, मरति, शो यहि वृत्तिमोथी युक्त अर्ध ने हिंस
वो पृथिवीय माहि लवोनी हिंसा मेरे छे. शा भाटे तेभ अरे छे ? “वेयत्थ जीय धम्मत्थकामहेऊ" वेहार्थ, भवन, धर्मार्थभने माटे तेभ रे छे. वेहार्थ - वेहोस्त धर्म डियागोने भाटे, भवनने भाटे, धर्मने भाटे, अर्थ - धनने भाटे, आभ-यांचे इन्द्रियांना विषयने भाटे, से मघां अरण समूहोने सीधे "सवसा" સ્વાધીન અથવા 66 अवसा " पराधीन हशाभां होवाथी " अट्ठाए ” પ્રત્યેાજનને
શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર