Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रश्रव्याकरणसूत्रे भ्रमरगुञ्जितमिव गुञ्जितं तथा निर्घान्तः व्यन्तरकृतो महाध्वनिः गुरुकनिपतित-विद्युद्विशेषादि संपातेन च जायमानोध्वनिः सुदीर्घः अत्यर्थं निहादी प्रतिध्वनियुक्तो निर्घोषः दूरश्रूयमाण: अतिदूरदेशादपि श्रूयमाणः गम्भीरो धुगूधुगिति शब्दश्च यत्र स तथा तं 'पडिपहरुभंत-जक्खरक्खस कुहंड-पिसायरुसिय - तज्जायउवसग्गसहस्ससंकुलं ' प्रतिपथरुन्धानयक्षराक्षसकूष्माण्ड पिशाचरुष्टतज्जातोपसर्गसहस्रसंकुलं = तत्र प्रतिपथं प्रतिमार्ग रुन्धानाः पथिकानां मार्गावरोधं कुर्वाणा ये यक्षाः राक्षसाः कूष्माण्डाः पिशाचाश्च सर्व व्यन्तरविशेषास्ते च ते रुष्टाः रोषयुक्ता स्तै र्जातानि यान्युपसर्गसहस्राणि-उपद्रवसहस्राणि तैः संकुला व्याप्तो यः स तथा तं 'बहूप्पाइयभूयं ' बहौत्पातिकभूतंबहून्यौत्पातिकानि-उत्पातभवानि दुःखानि भूतानि यत्र स तथा तं ' विरइय होता है। तथा (विउलगज्जिय गुंजिय) जिसका मेघ की तरह विशाल गर्जित एवं भ्रमरों के जैसा विशाल गुंजित, (निग्घाय) निर्घात-व्यन्तरों की ध्वनि, तथा (गरुयनिवडिय) विजली आदि का जो इसमें गिरना होता है उस समय निला हुआ जो अत्यन्त निदी प्रतिध्वनि युक्त विशेष निर्घोष ( दूरसुच्चंत ) दूर से सुनाई देने वाले ( गंभीर ) गम्भीर (धुगधुगंति ) ' धुगधुग' ऐसा शब्द, ये (सई) शब्द हैं जिसमें, तथा (पडिपहरुभंत-जक्ख-रक्खस-कुहंड-पिसायरुसिय-तज्जायउवसग्गसहस्ससंकुलं ) जो रुष्ट होकर पथिको के मार्ग का अवरोध करने वाले यक्ष, राक्षस, कूष्माण्ड ( व्यन्तरविशेषदेव) एवं पिशाचों के हजारों उपसर्गों से सदा व्याप्त रहता है ( बहूप्पाइय भूयं ) तथा जिसमें जीवों को अनेक उत्पातजन्य दुःखों का साम्हना तथा “ विउलगज्जियगुंजिय" २ भेना व भाटी ना ४२ छ अन प्रभ। २ वि गु०२१ ४२ छ, “निग्घाय” निर्धातव्यन्तरोना भावनि तथा “गरुयनिवडिय" qlavit मा तेम ५3 त्यारे तमाथी नlund निहींदी-प्रतिध्वनि युत निषि, “ दूरसुच्चंत " २थी सनजातो “ गंभीर" मली२ " धुगधुगंति” “धुरा धु।” वो मावा१४, माहि " सई " शह भी समय तथा “ पडिपहरुभंत-जक्ख-रक्खस-कुहंङ -पिसाय-रुसिय-तज्जाय उवसग्गसहस्ससंकुलं " २ २ ४ने भुसाशन માર્ગને અવરોધ કરનારા યક્ષ, રાક્ષસ, કુષ્માંડ, (વ્યન્તર વિશેષ દેવ) અને पिशयाना । सथी सही व्यास २३ छ, “बहूप्पाइयभूयं " तथा रेमा वाने माने यात न्यानो सामना ४२३॥ ५ छ, “विरइय
શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર