Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सुदर्शिनी टीका अ० ४ सू० १४ चतुर्थमन्तरिनिरूपणम् भिन्दन्ति-समयान् = सिद्धान्तान् धर्मान्-श्रुतचारित्रलक्षणान्-गणान् समसामाचारिजनसमूहान् विनाशयन्ति 'परदारी' परदारिणः परस्त्रीसक्ताः। तथा 'धम्मगुणरयाय' 'धर्मगुणरताश्च = सदाचारपरायणाः 'बंभयारी ' ब्रह्मचारिणः 'खणेग ' क्षणे नैव = अल्पकालेनैव - बहुकालरक्षितादपि .' चरित्ताओ' चारित्रात् 'उल्लोट्टंति ' उल्लोटयन्ति-निपतन्ति । 'जसमन्तो' यशश्विनः 'सुव्यया य सुव्रताश्च = व्रतपरिपालकाः अपि ' अजसकित्ति' अयशःकीर्ति 'पाति' प्राप्नुवन्ति । 'रोगत्ता' रोगा-क्षयादिरोगग्रस्ताः ‘वाहिया' व्याधिता: कुष्ठादिपीडिताः 'रोयवाही' रोगव्याधीन् ' वडुति ' वर्धयन्ति तेन 'दुवेयलोए दुराराहगा भवंन्ति' द्वयोश्च लोकयोदुराराधकाः = आत्मविराधका अपने सिद्धान्तों को, (धम्मे ) श्रुतचारित्र रूप धर्मको, एवं (गणे य) समान सामाचारी वाले गण को ( भिंदंति ) नष्ट कर डालते हैं । तथा(धम्मगुणरया य) जो धर्मगुण रत-सदाचारपरायण (बंभयारी ) ब्रह्मचारी होते हैं वे भी (खणे णं) क्षण भर में (चरित्ताओ) बहुतकाल के सुरक्षित अपने चरित्र से इसी एक दुर्गुण के वश से ( उल्लोटति) निपतित हो जाते हैं। तथा (जसमंतो) जो यशस्वी एवं (सुव्वया य) व्रतों के आराधक होते हैं वे भी इसी कारण ( अजसकित्ति) अपकीर्ति को ( पावेंति ) प्राप्त करते हैं (परस्स दाराओ जे अविरया) इस परदार सेवन से जो प्राणी अविरत होते है वे (रोगत्ता ) क्षयादि रोगों से ग्रस्त हो जाते हैं और ( बाहिया) कुष्ठ आदि व्याधियों से पीड़ित होते रहते हैं. इतना ही नहीं फिर आगे के लिये वे रोगों को और व्याधियो को बढा भी लेते हैं । इस तरह ( दुवे य लोए इहलोए परलोए चेव) " धम्मे " श्रुत यारित्र ३५ धमना भने “गणे य" समान सामान्याशा सभूडान। " भिंदाति" नाश ४३री नामे छ. तथा " धम्मगुणरया य" २ सो घम शुए२तसहाया२ ५२राया, “ बंभयारी" प्रझयारी हाय छ, तेसो ५५५ "खणेण" क्षवारमा “ चरित्तोओ" in समययी सुरक्षित रामेसा पोताना यारित्रथी थे मे हुने अधीन थने “ उल्लोट ति" प्रष्ट छ तय छ. तथा “जसमंतो" यशस्वी मने “सुव्वया य" प्रताना साराध डाय छ, ते ५५५ मे २0 “ अजसकित्ति" ५५ठीत "पाति" प्रात ४२ छे. "परस्सदाराओ जे अविरया " थे ५२स्त्रीगमनमा । सतत मासत २ छ तेस."रोगत्ता " क्षयादिशगाना भासपाय छ भने “वाहिया " ४ मा व्याधिमाथी या ४२ छ, मेट नहीं પણ ભવિષ્યમાં તેમના તે રોગ અને વ્યાધિઓ વધતા જાય છે. આ રીતે तेस। “दुवेय लोए-परलोए चेव" भन्ने समां मासभा मन परसोमा
શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર