Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सुदर्शिनी टीका अ० ५ सू०३ यथा ये परिग्रहं कुर्वन्ति तन्निरूपणम् ५१७ पनीयकनकवर्णः तप्तं यत्तपनीयकनकं तपनीयसुवर्णं तस्य वर्ण इव वर्णो यस्य सतथोक्तः-अग्नौ परितापनेन सुवर्णस्य यादृशो वर्णों भवति, तादृश वर्ण युक्त इत्यर्थः, आर्षवात्सूत्रे बहुवचनम् । तथा एभ्य इतरे ' जे गहा' ये ग्रहाः सम्पतिकालप्रसिद्धा नेपच्युलहर्पलादयः, 'जोइसम्मि' ज्यातिषि-ज्योतिश्चक्रे ' चारं चरंति' -परिभ्राम्यन्ति, ते ग्रहाः, तथा 'केउ य' केतवश्व-ज्योतिष्कविशेपा ये जगतः शुभाशुभनिमित्तमवलम्ब्योदयं प्राप्नुवति 'पुंछडियातारा ' ' चोटीवाला तारा' इत्यादि नाम्ना भाषामसिद्धाः, कीदृशा एते ? इत्याह ' गइरइया' गतिरतिकाःगमनशीलाएकराशितोऽन्यराशौ गमनस्वभावाः । एते चन्द्रसूर्यग्रहास्त्रिविधाज्योतिष्कदेवा उक्ताः । तथा ' अट्ठावीसइविहा य ' अष्टाविंशतिविधाश्च ' नक्खत्तदेवगणा' नक्षत्रदेवगणा:, कीदृशाः १ इत्याह-तथा 'नाणासंठाणसंठियाभोय'
और अंगारक-मंगल ये भेद हैं । यहअंगारक (तत्ततवणिज्जकणगवण्णा) तप्ततपनीय-तपाये हुए सुवर्ण के वर्ण के जैसा वर्ग वाला है। अर्थात्अग्नि में तपाने से सुवर्ण का जैसा रंग होता है वैसा ही इसका रंग है। तथा (जे य गहा जोइसियम्मि चारं चरंति ) इनसे अतिरिक्त जो इस समय में प्रसिद्ध नेपच्युल हर्षल आदि ग्रह हैं कि जो ज्योतिश्चक में परिभ्रमण करते हैं वे ग्रह तथा-(केऊ य) केतु ग्रह जो जगत के शुभ अशुभ निमित्त को लेकर उदित होता है और जिसे " पूंछडियातारा" चोटीवाला तारा" इत्यादि नाम से लोग कहा करते हैं ये सब ही ( गइरइया ) गमनशील है-एक राशि से अन्यराशि पर गमन करने के स्वभाववाले हैं। ये उक्त ( तिविहा) तीन प्रकार के चंद्र, सूर्य, ग्रहरूप ज्योतिषी देव तथा (अट्ठावीसइ विहा) अट्ठाईस प्रकार के ( नक्खत्तदेवगणा) नक्षत्र ( णाणासंठाणसंठियाओ) नाना रगाय ” राई, धूमतु, मुथ अने. म॥२४-भ3101 ४२॥ . ते 40२४-मण “ तत्ततवणिज्जकणगवण्णा " तपासा सुवर्ण ना २ वा पापपाणी छ. तथा “जे य गहा जोइसियम्मि चार चरति" ते सिवायना डासना સમયમાં પ્રસિદ્ધ નેપથ્યન, હર્ષલ આદિ ગ્રહો કે જે જ્યોતિશ્ચકમાં પરિભ્રમણ ४२ छेते अडी तथा “ केऊय " तुबह २ गतना शुभ अशुभ निमित्त દર્શાવવાને ઉગે છે અને જેને પૂછડિયા તારાને નામે ઓળખે છે, એ બધા જ “ गहरइया " आमना छ-२४ राशिमाथी अन्य राशिमा गमन ४२वान। १मा छे. ते ७५२।४त. “तिविहा" ३ ४१२॥ यन्द्र, सूर्य मन
३५ ज्योतिषी हेव, तथा “ अदावीसइविहा'' यावीस प्रा२ना “नक्खत्त देवगणा " नक्षत्र, “णाणासंठाणसंठियाओ'' विविध प्रा२ना सस्थानामा
શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર