Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 926
________________ ८६८ प्रश्रव्याकरणसूत्रे जलादिपात्राच्छादनवस्त्रखण्डम् , ' गोच्छओ' गोच्छका प्रमाणिका, तथा-'तिन्नि य पच्छगा' त्रयश्च प्रच्छादकाः, 'चादर ' प्रसिद्धाः, तत्र-द्वौ सूत्रनिर्मिती, एक ऊर्णनिर्मितः, तथा-'रओहरणचोलपट्टकमुहणंतकमाईयं ' रजोहरणचोलपट्टकमुखानन्तकादिकम् , तत्र-रजोहरणं प्रसिद्धम् , चोलपट्टकं परिधानवस्त्रम् , मुखानन्तकं सदोरकमुखवस्त्रिका, एतान्यादौ यस्य तत्तथा, 'एयपि य एतदपि च 'उवगरणं' उपकरणम् ‘संजमस्स ' संयमस्य-सावद्ययोगविरतिलक्षणसप्तदशविधस्य ' उववूहहणट्टयाए ' उपबृहणार्थताय, वृद्धयर्थमित्यर्थः, अत्र स्वार्थे तल्प्रत्ययः। तथा'वायायवदंसमसगसीयपरिरक्खणट्ठयाए' वातातपदंशमशकशीतपरिरक्षणार्थताय, तत्र बातातपादि संरक्षणार्थ, रागदोसरहियं ' रागद्वेषरहितं यथा भवति तथा णिच्चं' नित्यं 'परिवहियव्वं ' परिवोढव्यम् परिधर्तव्यं, 'संजएणं' संयतेन । ' पडिलेहणपप्फोडणपमज्जणाए' प्रतिलेखनप्रस्फोटनप्रमार्जनायाम् , तत्र-प्रतिलेखनं= का वस्त्र, (गोच्छओ ) गोच्छक-प्रमाणिका, तथा (तिण्णि य पच्छागा) तीन प्रच्छादक-चादर ( इनमें २ सूतके चादर और १ ऊनका कंबल रहता है ) ( रओहरणचोलपट्टग-मुहणंतगमाईयं ) रजोहरण, चोलपट्टक, मुखानन्तक,-सदोरकमुखवस्त्रिका आदि ये उपकरण रहते हैं सो (एयपि य ) ये उपकरण भी ( संजमस्स उववृहणट्ठयाए ) उस साधु के सत्रह प्रकार के संयम की रक्षा के निमित्त एवं वृद्धिके निमित्त ही होते हैं तथा- ( वायायवदंसमसगसीयपरिरक्षणट्टयाए ) वात, आतप -धूप दंशमशक, और शीत से रक्षा करने के लिये है । इसलिये (संजएणं ) संयत को ( रागदोसरहियं ) रागद्वेष से विहीन होकर (णिच्च) सर्वदा ये धौंपकरण (परिवहियव्वं ) धारण करना चाहिये अर्थात् अपने पास रखना चाहिये । और इनकी (पडिलेहणपफोडणपमज्ज पात्र ढ४वानुं वस्त्र, “ गोच्छओ” २७४-प्रमा४ि तथा “तिण्णी य पच्छागा " ३ प्रछा६४-या६२ (तेमा मे सूत। अने से उननी मस डाय छ). " रओहरण-चोलपट्टग-मुहणं-तगमाईयं " २०२], यासपर्ट, भुमानन्त-हा। सहितनी मुखपत्ती, माहि ५:२। २ छ, १जी " एयंपिय" ते ९५४२६३ ५५ " संजमस्स उववूहणद्वयाए" ते साधुना सत्तर प्रा२१ सय. भनी २क्षाने भाट भने वृद्धिने माटे ४ डाय छे तथा “वायायवदसमसग सीयपरिरक्खणट्रयाए” पात, ती, श भश४ सने शीतथी २क्षा ४२वाने भाटे छे. तेथी " संजएणं " संयतने “रागदोसरहिय” रागद्वेषथी २डित थन “णिच्चं" सहा ते धर्मा५४२७५ “ परिवहियब्व" पा२१ ४२i नस, मेटले पोतानी पासे २ . मने तेभनी “पडिलेहण શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર

Loading...

Page Navigation
1 ... 924 925 926 927 928 929 930 931 932 933 934 935 936 937 938 939 940 941 942 943 944 945 946 947 948 949 950 951 952 953 954 955 956 957 958 959 960 961 962 963 964 965 966 967 968 969 970 971 972 973 974 975 976 977 978 979 980 981 982 983 984 985 986 987 988 989 990 991 992 993 994 995 996 997 998 999 1000 1001 1002 1003 1004 1005 1006 1007 1008 1009 1010