Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 954
________________ प्रश्रव्याकरणसूत्रे यव्वं ' न मोहितव्यम्-तत्र मोहो न कर्तव्य इत्यर्थः, तथा-'विणिघायं' विनिघातः तदर्थ चारित्रभ्रंशः, आवज्जियचं' आपत्तव्यः कर्तव्यइत्यर्थः, तथा-' न लुभियचं ' न लोब्धव्यम्-लोभो न कर्तव्य इत्यर्थः, 'न तुसियव्वं ' न तोष्टव्यम्मनोज्ञशब्दादिषु प्रसन्नमनसा न भाव्यमित्यर्थः, तथा-' न हसियव्वं ' न हसितव्यम्-विस्मयेन हासो न कर्तव्यः, तथा-श्रमणः 'तत्थ' तत्र-मनोज्ञभद्रकशब्द विषये 'सई' स्मृति-स्मरणं च 'मई' मर्ति-बुद्धिनिवेशं च न कुज्जा' न कुर्यात् । 'पुणरवि य' पुनरपि चामनोज्ञादि शब्दविषये प्रोच्यते-'सोइंदिएण' श्रोत्रेन्द्रियेण · सोच्चा ' श्रुत्वा ' सद्दाई' शब्दान् कीदृशान् ? ' अमणुण्णपावगाइं ' अमनोज्ञपापकान्-अमनोज्ञाः अमनोहरा अतएव-पापकाः अशुभास्तान् कि ते' ललचाना नहीं चाहिये, (न मुज्झियव्वं) उनमे मोह नहीं करना चाहिये, (न विणिघायं आवज्जियव्वं ) उनके निमित्त अपने चारित्र को भ्रष्ट नहीं करना चाहिये, (न लुभियव्वं ) उनमें लुभाना नहीं चाहिये, (न तुसियव्वं ) उनसे प्रसन्नमन नहीं बनाना चाहिये, (न ह. सियव्वं ) हंसना नहीं चाहिये, और (न सइं च तत्थकुज्जा) न उन मनोज्ञशब्दादिकों की याद करना चाहिये और न उनमें अपनी बुद्धि को ही लगाना चाहिये। इसी प्रकार (पुणरवि य) फिर (सोइंदिएण) श्रोत्र इन्द्रिय से ( अमणुण्णपावगाइं ) अमनोज्ञ अतएव अरुचि कारक अशुभ (सद्दाई) शब्दों को (सोच्चा) सुनकर साधु का कर्तव्य है कि वह उन पर द्वेष भी न करे-नाक मुँह न सिकोडे, इसी विषय को अब सूत्रकार इन पंक्तियों द्वारा स्पष्ट करते हैं-वे कौन से हैं इस शंका के समाधान वनसटले सयान मे नही . " न मुज्झियव्व" तभनामा भाई ४२वे नमे नही "न विणिधायं आवजियव्य" तेमना निमित्त पोताना यारित्रने भ्रष्ट ४२वु नये नही, “न लुभियव्व" तमा सयाg नये नही. " न तुसियब" तेमा भनने प्रसन्न मन नडी. “न हसियव" उसने नही, मने “न सइं च मई ज तत्थ कुज्जा" ते મને શબ્દાદિકોને યાદ કરવા જોઈએ નહીં. અને તેમાં પિતાના મનને मेया॥ हे नही'. मेरी प्रमाणे 'पुणरवि य” जी “सोइंदिएण" श्रोत्र. न्यथी " अमणुण्णपावगोई” ममनोज्ञ भने ते ४ारणे २५२५४२४ भशुम " सहाई" शहीने " सोच्चा" सामाजीने तना प्रत्ये द्वेष ५५५ न ४२व। જોઈએ તે સાધુનું કર્તવ્ય છે–તેના તરફના તિરસ્કારથી નાક કે મેટું સંકેચવું બગાડવું જોઈએ નહીં, એ જ વિષયને સૂત્રકાર આ પંકિતઓ દ્વારા સ્પષ્ટ કરે છે તે ક્યા કયા પ્રકારના છે તે શંકાના નિવારણના માટે તેઓ તે અમ શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર

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