Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 1001
________________ सुदर्शिनी टीका अ०५ सू०१२ अध्ययनोपसंहारः ९४३ टीका-' एवमिण ' एवम् अनेन प्रकारेण इदम् अपरिग्रहनामकं ' संवरदार' संवरद्वारम् ' संवरियं ' संवृतं संसेवितं सत् ‘सुप्पणिहियं' पुप्रणिहितं सु. रक्षितं ' होइ' भवति । ' मणवयणकायपरिरक्खिएहि' मनोवचनकायपरिरक्षितैः= योगत्रयपरिरक्षितैः ' इमेहिं पंचहिं वि कारणेहिं ' एभिः पञ्चभिरपिकारणैः पूर्वो. क्ताभिः पञ्चभिर्भावनाभिरित्यर्थः, ' णिच्चं ' नित्यम् ‘आमरणंत' आमरणान्तं मरणपर्यन्तं च ' एसजोगो , एप योग अपरिग्रहलक्षणसंवररूपव्यापारः ‘धिइमया' धृतिमता-स्वस्थचित्तेन ' मइमया' मतिमता-हेयोपादेयबुद्धियुक्तेन 'नेयव्यो' नेत्तव्यः-वोढव्यः-परिपालनीय इत्यर्थः । कीदृशोऽयं योगः ? इत्याह-अयं योगः 'अणासवो' अनाश्रवः-नूतनकर्मागमनरहितत्वात् , ' अकलुसो' अकलुप:-शुभाध्यवसायत्वात् , ' अच्छिदो' अच्छिद्रः-छिन्नस्रोतस्त्वात् , 'अपरिस्साई' अब सूत्रकार इन पांचवें संवरद्वार का उपसंहार करते हैं-'एवमिणं' इ० टीकार्थ-( एवमिणं संवरदारं ) इस प्रकार से यह अपरिग्रह नाम का संवरद्वार ( सम्मसंवरियं ) अच्छी तरह सेचित होने पर ( सुप्पणिहियं ) सुरक्षित हो जाता है । इसलिये ( मणवयणकायपरिरक्खिएहिं ) मन, वचन और कायरूप तीन योगों से परिरक्षित हुई ( इमेहिं पंचहिं कारणेहिं ) इन पांच भावनाओं का (णिच्चं ) सदा (आमरणंतं) मरणपर्यन्त-यावज्जीव ( एस जोगो ) यह अपरिग्रहलक्षणसंवररूप व्यापार (धिइमया मइमघा नेयम्यो ) धैर्यशाली एवं हेय और उपादेय के विवेक से युक्त बुद्धिवाले साधुजन को सेवन करना चाहिये, क्यो कि यह योग ( अणासवो) नवीन कर्मों के आगमन से रहित होने के कारण अनाश्रवरूप है, ( अकलसो) शुभाध्यवसायरूप होने से अकलुष है, ( अच्छिद्दो ) इसमें पापका स्रोत छिन्न हो जाता है इसलिये अच्छिद्र હવે સૂત્રકાર આ પાંચમાં સંવરદ્વારનો ઉપસંહાર કરે છે साथ--" एवमिणं संवरदारं " २ प्रमाण मा अपरिग्रह नामना संव२वा२र्नु “ सम्भं संवरियं” सारी ते सेवन थतi " सुप्पणिहियं" सुरक्षित २६ नय छे. तेथी "मणवयणकायपरिरक्खिएहिं ” मन, वयन २५ने ४.य, से त्राणे योगाथी परिक्षित थयेस “ इमेहिं पंचहि कारणेहि " से पाय मा. नासानु “ णिच्च” स! " आमरणंतं " वन पय-त “ एसजोगो” मा अपरिग्रहसव२३५ व्यापा२ " धिइमया मइमया नेयव्वो" धैय शाजी मने उय અને ઉપાદેયના વિવેકથી યુક્ત બુદ્ધિમાન સાધુએ સેવન કરવું જોઈએ, કારણ तयार “ अणासवो” नूतन ना सामनथी २हित डावाने ४२॥ मना१३५ छ. “अकलुसो शुभ २मध्यवसाय३५ डावाथी २४युष छ, “अच्छिद्दो" શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર

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