Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 957
________________ सुदर्शिनी टीका अ० ५ सू०७ 'परिग्रहविरमण'नामकप्रथमभावनानिरूपणम् ८९९ परसमक्षं च निन्दा न कर्तव्या, 'न छिदियव्वं ' न छेत्तब्यम् अमनोज्ञ शब्दकर्तुद्रव्यस्य छेदो न कार्यः, तथा-'न भिंदियव्वं ' न भेत्तव्यम् , तस्यैव न भेदः कर्तव्यः, ' न वहेयध्वं ' न हन्तव्यम्-तस्यानिष्ट शब्दकर्तुर्वधो न कर्तव्यः, तथा'दुगुंछावत्तियावि' जुगुप्सात्तिकाऽपि शब्दविषये स्वस्य परस्य वा घृणात्तिरपि, ' उप्पाएउं' उत्पादयितुं न लब्भा' न लभ्या-नोचिता, यथा-स्वस्य परस्य वा हृदि शब्दविषया जुगुप्सा प्रादुर्भवेन्न तथा कर्तव्यमिति भावः । अथ प्रथमभावनानिगमनार्थमाह-एबम् उक्तरीत्या 'सोइंदियभावणाभाविओ' श्रोत्रेन्द्रियभावनाभावितः श्रोत्रेन्द्रियं निरोद्धव्यम् , अन्यथा-महदनर्थसंभवः, इत्येवं रूपया भावनया भावितः, अंतरप्पा' अन्तरात्मा-जीवो ‘भवइ' भवति, ततश्च 'मणुप्रणामणुण्णसुन्भिदुभिरागदोसे' मनोज्ञामनोज्ञसुरभिदुरभिरागद्वेषो मनोज्ञामनोज्ञा ( न हीलियव्वं ) उनकी अवज्ञा न करे, (न निंदियव्वं ) निंदा न करे ( न खिसियव्वं ) उन पर खिसियावे नहीं-दूसरों के समक्ष उनकी निंदा न करे (न छिदियव्वं ) जो अमनोज्ञ शब्दों करने वाला विणादि द्रव्य है उसका वह न छेदन करे और ( न भिदियव्वं ) न भेदन करे ( न बहेंयव्वं ) अनिष्ट शब्द करने वाले मनुष्य आदि का वध न करे । और (न दुगुंछा वत्तिया विलब्भा उप्पाए उं) न उन अनिष्ट शब्दों के विषय में अपने एवं पर के घृणावृत्ति उत्पन्न करने की कोशिश ही करे । अब सूत्रकार इस प्रथम भावना का उपसंहार करने के लिये कहतेते हैं-( एवं) इस प्रकार (सोइंदियभावणाभाविओ) श्रोत्रेन्द्रिय की भावना से भावित हुआ 'मुझे श्रोत्रेन्द्रिय का निरोध करना चाहिये नहीं तो बड़ा भारी अनर्थ होगा' इस प्रकार की विचारधारा से वासित हुआ (अंतरप्पा ) अन्तरात्मा मुनि (मणुण्णामणुण्णसुन्भिदुन्भि रागदोसे पणिहियप्पा ) मनोज्ञ रूप शुभ और अमनोज्ञखिसियव्वं" तेन। ५२ मिसिया नही-सी पासे तनानि ४२वी नध्य नही', "न छिदियब्वं” ममनोज्ञ मवा०४ ४२ना२ वी वस्तु डाय तेर्नु ते छन न ४२, “न भिदियव्वं " तेतुं सहन न ४२ "न वहेयव्वं " मनिष्ट श६ ४२ना२ मनुष्य माहिना ते १५ न ४२, मने “ न दुगुंछावत्तिया बि लब्भा उपाएउ" ते अनिष्ट श५४ प्रत्ये पोते तृ। न ४२ ने भीम . વૃત્તિ પેદા કરવાની કે શિશ ન કરે. હવે સૂત્રકાર આ પહેલી ભાવનાને ઉપसहा२ ४२di छ-" एवं" । शते “सोइंदियभावणाभाविओ" श्रोत्रન્દ્રિયની ભાવનાથી ભાવિત થયેલ “મારે શ્રોતેન્દ્રિય પર અંકુશ રાખવે જોઈએ નહી તે ઘણે ભારે અનર્થ થશે ?’ એ પ્રકારની વિચારધારાથી પ્રભાવિત थये। “ अतरप्पा" अन्तरात्मा-मुनि “ मणुण्णामणुण्णसुन्भिदुन्भिरागदोसे पणिहि શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર

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