Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रश्रव्याकरणसूत्रे 'गायपच्छण' गात्रप्रतक्षणं-वास्यादिना शरीरच्छोलनम् , ' लक्खारसखारतेल्लकलकलंततउअ-सीसककाललोहसिंचण' लाक्षारसक्षारतैलकलकलायमानत्रपुकसी. सककाललोहसेचनम् , लाक्षारसेन लाक्षा-जतु तस्या रसेन=तप्तेन द्रवेण क्षार तैलेन-क्षारपदार्थ मिश्रिततैलेन, कलकलायमानेन अतितप्ततया शब्दायमानेन त्रपुकेण-रङ्गेण सीसकेन' सीसा' इतिप्रसिद्धद्रव्येण, काललोहेन-कृष्णलोहेन च यत्सेचनम् ' हडिबंधण' हडिबन्धनम् खोडकक्षेपः, 'रज्जुनिगलसंकलन' रज्जुनिगडसङ्कलनम्-रज्जवा निगडेन च संकलनंबन्धनम् ' हत्थंदुय' हस्तान्दुकम् काष्ठादिनिर्भितहस्तबन्धनसाधनेन यद्वन्धनं तद्धस्तान्दुकमुच्यते, 'कुंभिषाक' कुम्भीपाका कुंभ्यां पात्रविशेषे पाकः पचनम् ' दहण ' दहनम् अग्निना दाहकरणम् , ' सीहपुच्छण' सिंहपुच्छनं-लिङ्गबोटनम् , ' उब्बंधणं ' उद्भन्धनं पाशोल्लम्बनम् , ' मूलभेय' शूलभेदः, शूलेनभेदाभेदनम् , 'गयचलणमलण' गजचरणमर्दकम् गजचरणैमर्दनम् , 'करचणकन्ननासोटसीसछेयण' करचरणकर्णनासो. खप्पवेस ) मईयों को नखों में भोंकना, ( गायपच्छण) वसूला आदि से शरीर के अवयवों को छोलना, ' लक्खारस' तपे हुए लाखके रससे, ( खारतेल्ल) क्षारपदार्थ मिश्रित तपे हुए तैल से तथा (कलकलंत) अत्यंत उकलने से पिघले हुए ( तउ) पु-कथीर से, (सीसक) सीसे से (काललोह ) काले लोहे से, (सिंचण) शरीर को सींचना-शरीर पर छिडकना ( हडिबंधण) खोडे में डालना, ' रज्जुनिगलसंकलन ' रस्सी और बेडी बांधना, ' हत्थंडुय' हथकडी में बांधना 'कुंभीपाग' कुंभी में पकाना, 'दहण' अग्नि में जलाना, 'सीहपुच्छण ' लिङ्ग को तोडना, 'उब्बंधण' फांसी में लटकाना, 'मूलभेय' मूलीपर चढ़ाना, 'गयचलण'-हाथी के पैरो से कुचलना, 'करचरणकन्ननासोहसीसछेयण' हाथ-पैर, कान, Gival माहिथी शरीरमा अवयवान छ।सवानी ठिया, लक्खारस-गरम सामना २सथी खारतेल्ल-क्षारयुत पहाथ थी तपासा तेसथी, तथा कलकलत-मत्यत गरम ४२पाथी मागणेता " तउ” ४थीरथी, "सीसक"-सीसाथी "काललोह" -
mi सोढाथी, “ सिंचण "- शरी२ ५२ २९वानी ल्या, “हडिबंधण"-हम पूरवु, “ रज्जुनिगलसंकलन"-हो२i सने मेरी 43 मांध, “ हत्थंडुय"
थीम पांच', “ कुंभीपाग" मुलामा ५४१', "दहण'-अनिमा माण " सीहपुच्छण"-सिगने तोवु', “उब्बंधन' सीसे सटप', "सलभेय"सूजी ५२ याव, “गयचलण "-उथीना ५० तणे यहा, “ करचरणकन्नकासोट्ठसीसछेयण " हाथ, ५, ४ान, ना, 18 मने भरतनुं छेदन ४२१.
શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર
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