Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 942
________________ ८८४ प्रश्रव्याकरणसूत्रे व्यः-अपरिभवनीयो ' होइ' भवति, तथैव साधुः परीषहैरपराजितो भवति । तथा 'सारयसलिलं व शारदसलिलमिव शरदृतुसम्बन्धिजलमिव 'सुद्धहियए' शुद्धहदयः -स्वच्छान्तः करण इत्यर्थः, तथा 'भारंडे चेव' भारण्ड इव=भारण्डपक्षीव ' अप्पमत्ते' अप्रमत्ता प्रमादवर्जितः ‘खग्गिविसाणं व' खजिविषाणमिव खड्गी= गेडा' इतिप्रसिद्धो वन्यश्चतुष्पदविशेषः, तस्य विषाणं-शृङ्गमिव 'एग जाए' एकजात:यथा-खगिनः शृङ्गामेकं भवति, तथैव साधुरपि रागद्वेषरहित एकाकी भवति । तथा-' खाण्व ' स्थाणुरिव · उड्काए' ऊर्ध्वकायः कायोत्सर्गकाले, तथा ' सु पणगारेव्च' शून्यागारमिव अप्रतिकर्मा शरीरसंस्कारवर्जित इत्यर्थः, तथा 'सुण्णागारावणस्संतो' शून्यागारापणस्यान्तः शून्यस्यागारस्यापणस्य च अन्तः=मध्ये निवायसरणप्पदीवज्झामणमिय' निर्वातशरणप्रदीपध्यापनमिव-निर्वातो वातरहितो यः शरणप्रदीपः-गृहप्रदीपस्तस्य ध्यापनमिव-प्रज्वलितशिखेव निप्पकंपे' देशविरति श्रावकों की अपेक्षा सकलसंयम का अधिपति और परिषहों से अपराजित होता है। (सारयसलिलं व सुद्धहियए) वह शरत् ऋतु संबंधी जल के समान स्वच्छ अंतः करण वाला होता है, (भारंडे. चेव अप्पमत्ते ) भारंडपक्षी के समान वह प्रमाद से वर्जित होता है, (खग्गिविसाणं व एगजाए ) गेडो के सींग के समान वह एक जात होता है-अर्थात् जैसे गेंडा का श्रृंग एक ही होता है उसी तरह साधु भी रागद्वेष रहित होने से एकाकी ही होता है। (खाणूव उडकाए ) स्थाणु जिस प्रकार उर्ध्वकाय होता है उसी प्रकार साधु भी कायोत्सर्ग के समय उर्ध्वकाय होता है। (सुण्णागारेव्व अपडिकम्मे ) शून्य गृह जैसे संस्कार विहीन होता है उसी प्रकार साधु भी शारीरिक संस्कार से वर्जित होता है । (सुण्णागारावणस्संतो निवायसरणष्पईवज्झामणमिव અજેય હોય છે તેમ સાધુ પણ દેશ વિરતિ શ્રાવકેની અપેક્ષાએ સકળ સંયभनी मधिपति मने परीपाथी २०५२रित डाय छ. “ सारयसलिलं व सुद्धहियए" ते १२४ ऋतुननी समान २१२७ मत:४२६२पाले डाय छे. "भारण्डे चेव अप्पमत्ते" भार पक्षीना रोते प्रभाह २डित हाय छे. खग्गिविसाणं व एगजाए " गाना शिगानी भ ते २४ी 31. छ. मेटले કે જેમ ગેંડાને એક જ શિંગડું હોય છે તે પ્રમાણે સાધુ પણ રાગદ્વેષ डित वाथी सी २४ डाय छे. "खाणूव उड्डकाए " स्थाभ उपाय छ तेभ साधु ५५] योत्सना समये य डाय छे." सुण्णागारेव्व अपडिकम्मे " माली मान म. स२४१२ विडीन डाय छ तेम साधु ५१ शारी२ि४ सं२४॥२ २डित डाय छ, “सुण्णागारावणस्संतो निवायसरणप्पड़ શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર

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