Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 940
________________ ૮૮૨ प्रश्रव्याकरणसूत्रे दाहकत्वमप्रकाशयन्नप्यन्तर्जाज्वल्यमानो भवति, तथैव श्रमणो बहिः शुष्को रूक्ष: कान्तिरहितोऽप्यन्तः स्तपोजनितदीप्त्यादेदीप्यमानो भवतीति भावः । तथा'जलियहुयासणो विब ' ज्वलितहुताशनइव-प्रदीप्तानिरव ' तेयसा' तेजसा ज्ञानरूपतेजसा 'जलंते ' ज्वलन्-दीप्यमानः, भावतमोविनाशकत्वात् ‘गोसीसचंदणं पिव ' गोशीर्षचन्दनमिव 'सीयले ' शीतला मनस्तापोपशमनात् 'सुगंधी य' सुगन्धिना, सुरभिगन्धेन शीलसौगन्ध्यात् ' हरओ विव' इदक इव-जलाशय इव · समियभावे ' समिकभावः सम एव समिकः, स भावो यस्य सः, अयं भावः-यथा हृदो वाताभावे तरङ्गाभावेन निम्नोन्नतराहित्येन समाकारतया परिजायतेए ) भस्म राशि से छन्न अंग्नि जिस प्रकार ऊपर से अपने दाहकत्व परिणामको प्रकाशित नहीं करती हुई भी भीतरमें जाज्वल्यमान रहा करती है उसी तरहसे वह साधु भी बाहिरसे शुष्ककाय, रूक्ष और कान्तिरहित होता हुआ भी भीतरमें तपजनित दीप्तिसे देदीप्यमान होता है । तथा-(जलिय हुयासणोंविव तेयसा जलंते) प्रदीप्तवह्नि जिस प्रकार अपनी प्रभा से चमकती रहती है उसी प्रकार यह भी भावतम का विनाशक होने से ज्ञानरूप तेज से चमकता रहता है। (गोसीसचंदणंपिव सीयले ) गोशीर्ष चंदन जिस प्रकार शीतल और सुगंधित होता है उसी प्रकार यह साधु भी मनस्ताप के उपशमन से शीतल होता हैं और (सुगंधीय हरओविव समियभावे ) शील की सुगंधी से इद की तरह समभाववाला अर्थात् जिस प्रकार जलाशय वायु के अभाव से तरंगों के उत्थान पतन से रहित होने के कारण ऊँचा नीचा नहीं राखिच्छन्नेव जायतेए' २१मना ढसा नाय २७सी अभिम. ५२थी पोताना દાહકતા પ્રગટ કરતી નથી છતા અંદર સળગતી પ્રકાશિત રહે છે, તેમ તે સાધુ પણ બહારથી શુષ્ક શરીર વાળે, રૂક્ષ અને કાતિ રહિત હોવા છતાં ५५५ मरथी त५ भनित तेथी दीप्यमान डाय छे. " जलिय हुयासणोविव तेयसा जलंते " प्रहीत. मसिम पाताना तेथी २४ती २३ छ तम त मावतमनो विनाश पाथी ज्ञान ३५ तेथी यमरतो २७ छ. "गोसीसचंदणंपिव सीयले " माशीष यन शात अने सुगधित डाय छ ते प्रारे भनन तार्नु उपशमन थवाने ॥२॥ो तर डाय छ भने “ सुगं. घियहरओविव समियभावे" सनी सुमधथी स१२ना समान सममा વાળ હોય છે, એટલે કે જેમ વાયુના અભાવે તરંગેના ઉત્થાન તથા પતનથી રહિત હોવાને કારણે સરોવરની સપાટી ઊંચીનીચી લાગતી નથી પણ શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર

Loading...

Page Navigation
1 ... 938 939 940 941 942 943 944 945 946 947 948 949 950 951 952 953 954 955 956 957 958 959 960 961 962 963 964 965 966 967 968 969 970 971 972 973 974 975 976 977 978 979 980 981 982 983 984 985 986 987 988 989 990 991 992 993 994 995 996 997 998 999 1000 1001 1002 1003 1004 1005 1006 1007 1008 1009 1010