Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रश्रव्याकरणसूत्रे जहा' उरगो यथा-सर्प इव ‘कयपरनिलए चेव' कृतपरनिलयश्चैव-कृतः आश्रयीकृतः परनिलयो येन सः, अयं भावः-यथा सर्पोऽन्यकृतबिले तिष्ठति, तथैव श्रमणः परकृतगृहे तिष्ठति । तथा-' अनिलोव्य ' अनिल इव-पवन इव 'अप्पडिबद्धो' अप्रतिबद्धः-अपतिवन्धविहारीत्यर्थः, तथा ' जीवोव्य ' जीव इव 'अप्पडिहयगई' अप्रतिहतगतिः= सर्वदेशविहारीत्यर्थः । अत्र सर्वत्र 'चैत्र' शब्दः समुच्चयार्थः, 'गामे गामे य' ग्रामे ग्रामे च ' एगरायं' एकरात्रं 'णगरे णगरे' नगरे नगरे ‘पंचरायं' पश्चरात्रम् , ' दूइज्जतो' द्रवन्-विहरन् , निवासं कुर्वनित्यर्थः, तथा — जिइंदिए ' जितेन्द्रियः, 'जियपरीसहे' जितपरिषहः, अतएव ‘निभए ' निर्भयः - विऊ ' विद्वान-तत्त्वज्ञ इत्यर्थः, 'सचित्ताचित्तमीसएहिं' है ( कयपरनिलए जहा चेव उरए ) सर्प की तरह वह दूसरे ने अपने निमित्त बनाये हुए घर में रहता है, अर्थात् जिस प्रकार सर्प अन्य चूहे आदि से बनाये गये बिल में रहता है उसी प्रकार साधु भी गृहस्थ के बनाये हुए घर में रहता है। (अप्पडिबद्धो अनिलोव्व ) अनिल पवन-की तरह वह अप्रतिबद्ध - प्रतिबन्ध से रहित होता है अर्थात् वह साधु अप्रतिबन्ध विहारी होता है। तथा (जीवोव्व अप्पडिहयगई) जीव की तरह वह अप्रतिहत गतिवाला होता है-उसका विचरण सर्वत्र होता है-उसे कीसी भी देश में विचरण करने का निषेध नहीं होता है । (गामे गामे य एगरायं ) वह हर एक ग्राम में एक रात्री तथा (णगरे णगरे य पंचरायं) तथा प्रत्येक नगर में पांच रात्रि तक (दूइज्जते ) ठहरता है । तथा (जिइंदिए) जितेन्द्रिय (जियपरिसहेय) जितपरीषह अत एव (निअए ) निर्भय (विऊ) विद्वान्-तत्त्वज्ञ, वह परनिलए जहा चेव उरए" सपना रेभ ते मागे पोताना भाट मनाai ઘરમાં રહે છે, એટલે કે જેમ સર્પ ઉંદર આદિએ બનાવેલા દરમાં રહે છે तेम साधु ५५] डस्थे नासा घरमा २ छ. “ अप्पडिबद्धो अनिलोव्ब" અનિલ-પવનની જેમ તે અપ્રતિબદ્ધ-પ્રતિબંધથી રહિત હોય છે-એટલે કે તે मप्रतिम विडारी य छे. " जीवोव्व अप्पडिहयगई” नीम ते मप्र: તિહત ગતિવાળા હોય છે. તેનું વિચરણ સર્વત્ર હોય છે. તેને કોઈ પણ પ્રદેशमा वियवान। विषेध तो नथी. " गामे गामे य एगराय" ते ४२४ ॥ममा मे रात्री तथा " णगरे णगरे च पंचराय” तथा प्रत्ये: नाम पाय रात्रि सुधी " दृइज्जते '' २।४य छे. तथा “जिदिए " तिन्द्रिय" जियपरि. सहेय” पशषडाने ना२ पाथी “निन्भए" निमय “ विऊ” विज्ञान
શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર