Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सुदर्शिनी टीका अ०५ सू० ६ संयताचारपालकस्य स्थितिनिरूपणम्
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'पावयणं' प्रवचनं ' भगवया ' भगवता 'सुकहियं ' सुकथितम् ; ' अतहियं ' आत्महितम् , ' पेच्चाभावियं ' मेत्यभाविकम् 'आगमेसिभदं ' आगमिष्यद्भद्रं ' सुद्धं ' शुद्धं 'नेयाउयं ' नैयायिकम् ' अकुडिलं ' अकुटिलम् 'अणुत्तरं ' अनुत्तरं 'सम्बदुक्खपावाणं ' सर्वदुःखपापानां विउसमणं' व्युपशमनम् । एषां व्याख्या पूर्व गता । ' तस्स' तस्य-अपरिग्रहनामकस्य ' चरिमस्स' चरमस्य अन्ति मस्य ' संवरदारस्स' संवरद्वारस्य 'इमा पंच भावणाओ' इमाः वक्ष्यमाणाः पश्च भावनाः 'हुति ' भवन्ति । किमर्थं भवन्ति ? इत्याह-' परिग्गहवेरमणरक्खणढयाए ' परिग्रहविरमणरक्षणार्थतायै-अपरिग्रहपरिरक्षणार्थमित्यर्थः ॥ सू. ६॥ व्रत की रक्षा के लिये ( भगवया सुकहियं) भगवान ने कहा है । यह ( अत्तहियं ) आत्मा का हितकारक है। (पेचाभावियं) परलोक में भी शुभ फल का दाता है । इसी निमित्त से यह (आगमेसि भई ) भविष्यत् काल में कल्याण प्रद है यह ( सुद्धं ) सर्वथा निर्दोष है । (नेयाउयं) वीतराग सर्वज्ञ एवं हितोपदेशक प्रभु द्वारा भाषित होने से न्याय संपन्न है। (अकुडिलं) ऋजुभाव का जनक होने से अकुटिल है। (अणुत्तरं ) सर्व श्रेष्ठ होने से अनुत्तर है। तथा ( सव्वदुक्खपावाणं) समस्त प्रकार के दुःख जनवह ज्ञानावरणीय आदि अष्ठविध कर्मों का (विउसमणं) उपशमक है। (तस्स चरिमस्स संवरदारस्स) उस अन्तिम संवरद्वार की (इमा पंचभावणाओ) ये वक्ष्यमाण पांच भावनाए हैं जो (परिग्गहवेरमणरक्खणठ्याए हुंति ) परिग्रह विरमण व्रत की रक्षा करने वाली होती हैं । सू०६॥ वया सुकहियं " भगवाने डस छ " अत्तहियं " मात्मानु ति।२४ छे. “ पञ्चा भावियं" ५२सभा ५५ शुम ३ हुन छे. मे ४ ४२णे ते " आगमेसि भर"मविष्यमा स्याहायी छे, ते “सुद्धं " तदन निषि छ" नेयाउयं" વીતરાગ સર્વજ્ઞ અને હિતોપદેશક પ્રભુ દ્વારા કથિત હોવાથી તે ન્યાયયુક્ત છે. " अकुडिल" *नुमान न पाथी त मटि छ “ अणुत्तर" सर्वश्रेष्ठ उपाथी ते अनुत्तर छ. तथा “ सव्वदुक्खपाबाणं" समस्त प्रा२ना
४४ शान।१२७।५ मा 83 4४।२॥ भनि “ विउसमणं " S५२मान ४२॥२ छ. "तस्स चरिमस्स संवरदारस्स" ते मन्तिम सव२वारनी " इमा पंचभावणाओ" मा प्रमाणे पाय माना छ । “परिगग्गहवेरमणरक्षणट्रयाए हुंति" परियड वि२माण व्रतनी २६॥ ४२नारी य छ । सू. ६ ॥
શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર