Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सुदर्शिनी टीका अ०५ सू०७ ‘निस्पृहता' नामकप्रथमभावनानिरूपणम् ८९१
भवइ अंतरप्पा मणुण्णामणुण्ण सुभिदुब्भिरागदोसे पणिहियप्पा साहू मणवयणकायगुत्ते संबुडे पणिहिइंदिए
चरेज धम्मं ॥ सू० ७॥ ___टीका-'पढम' प्रथमां निःस्पृहत्वाभिधेयां भावनामाह-'सोईदिएण' श्रोत्रेन्द्रियेण-कर्णेन 'सोचा' श्रुत्वा 'सद्दाई' शब्दान् , कीदृशान् ? 'मणुण्णभदगाई' मनोज्ञभद्रकान्=मनोज्ञाः मनोहरा अतएव भद्रकाः कर्णेन्द्रिय सुखजनकास्तान् 'किं ते' काँस्तान् कथंभूताँस्तान् ? इत्याह-' वरमुरयमुइंगपणवददुरकच्छभी वीणविपंचिवल्लइबद्धीसकसुघोसणंदिसूसरपरिवादिणि वंसतूणगपव्ययतंतीतलतालतुडियनिग्घोस. ____ अब सूत्रकार इस व्रत की पांच भावनाओं को प्रकट करने के अभिप्राय से सर्व प्रथम उसकी प्रथम भावना को कहते हैं--'पढम' इत्यादि।
टीकार्थ-(पढम) इस व्रत की पहिली भावना का नाम निस्पृहता है, वह भावना इस प्रकार से है-(सोइंदिएण ) श्रोत्रेन्द्रिय से, (मणुण्णभद्दगाई) मनोज्ञ अतएव मधुर ऐसे (सद्दाई) शब्दों को ( सोचा) सुन करके साधु का कर्तव्य है कि वह कभी भी उनमें आसक्ति न करे रागभाव से उनमें न बँधे, उनमें वह गृद्धिभाव न करे और मोहित न हो तथा जो द्वेष पैदा करने वाले हों उनमें वह रुष्ठ न हो। इसी विषय को सूत्रकार इन नीचे की पतियों द्वारा स्पष्ट करते हैं-(किं ते) बे कौन २ से हैं-इस प्रकार की शंका करने वाले के प्रति वे कहते हैं कि सुनो वे इस प्रकार से हैं (वरमुरयमुयंगपणवदुरकच्छभी वीण विपंचि-बल्लइ-बद्धीसक-सुघोस-शंदि-सूसर-परिवादिणिवंसतूणक
હવે સૂત્રકાર આ વ્રતની પાંચ ભાવનાઓ પ્રગટ કરવાના ઉદ્દેશથી સૌથી ५i तनी प्रथम भावना विष छ-" पढमं" त्याह
10-“पढम” २मा प्रतनी पडसी भावनानु नाम निस्पृडता छ, ते भावना या प्रमाणे छ-"सोइंदिएण" श्रोत्रन्द्रियथी. "मणुण्णभद्दगाइ” भनाइ डावाथी मधु२ मा छ “ सदाइ" शो " सोचा" सामजीन तम मासत थq જોઈએ નહીં એ સાધુનું કર્તવ્ય છે, તેમાં રાગભાવ ન રાખે, તેમનામાં તેણે મૃદ્ધિભાવ કરે જોઈએ નહીં, મોહિત થવું જોઈએ નહીં. એ જ વિષયને सूत्रा२ लियेनी बीटीसी द्वारा २५ष्ट ४२ छ-" किं ते" ते शह! ४॥ ४॥ ज्या छ. २ ४२नी २४ ४२ना२ ते ४ छ में सामने ते मा प्रभारी छ-"वर -मुरय-मुयंग-पाणव-ददुरकच्छभी-वीण-विपंचि-बल्लइबद्धीसक-सुघोस--दिसूसर
શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર